शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी
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ग़ज़ल रचनाकार में पूर्व प्रकाशित कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था, हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था। मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी, ...
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नवगीत
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पंछी के कोटर में सपनों के जाले। चुगती है संध्या भी नेह के निवाले। गगन तिमिर निरख रहा तारों का क्रंदन, रजनी के भाल, चंद्र लेप ग...
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फागुनी दोहे
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देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन। मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन।। निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल। इतराता सा वह चला, लेकर र...
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हिंदयुग्म का वार्षिकोत्सव
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कल 5 मार्च, 2011 को नई दिल्ली के राजेन्द्र भवन ट्रस्ट सभागार में हिंदयुग्म का वार्षिक सम्मान समारोह आयोजित हुआ। इस आयोजन में 12 यूनिकवियों...
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ग़ज़ल
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अक्स निशाने पर था रक्खा किसी और का, शीशा टूट-टूट कर बिखरा किसी और का। दरवाजे पर देख मुझे मायूस हुए वो, शायद उनको इंतज़ार था किसी...
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उतना ही सबको मिलना है
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ग़ज़ल उतना ही सबको मिलना है, जिसके हिस्से में जितना है। क्यूं ईमान सजा कर रक्खा, उसको तो यूं ही लुटना है। ढोते रहें सलीबें अपनी...
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गीतिका
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एक दिया तो जल जाने दे, सूरज को कुछ सुस्ताने दे। पलट रहा क्यूं आईने को, जो सच है वो दिखलाने दे। एक सिरा तो थामो तुम भी, उलझा है...
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गीत मैं गाने लगा हूं
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गीत मैं गाने लगा हूं, स्वप्न फिर बुनने लगा हूं। तमस से मैं जूझता था, कुछ न मन को सूझता था, हृदय के सूने गगन में, सूर्य सा जलने लग...
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