शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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दोहे

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दुनिया अद्भुत ग्रंथ है, पढ़िये जीवन माहिं, एक पृष्ठ भर बांचते, जो घर छोड़त नाहिं। दुर्जन साथ न कीजिए, यद्यपि विद्यावान, सर्प भले ही मण...
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किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।

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सरे बज़्म जी भर सताया किसी ने, मेरा कर्ज सारा चुकाया किसी ने। थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी, तभी एक पत्थर गिराया किसी ने। सुकूने-जि...
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चकित हुआ हूं

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तिक्त हुए संबंध सभी मैं  व्यथित हुआ हूं, नियति रूठ कर चली गई या, भ्रमित हुआ हूं। दुर्दिन में भी बांह छुड़ा कर  चल दे ऐसे, मित्रों के...
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मानवता

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ढूंढूं कहां, कहां खो जाती मानवता, अभी यहीं थी बैठी रोती मानवता। रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय, इसीलिए आहत सी होती मानवता। मानव ...
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नवगीत

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पोखर को सोख रही जेठ की दुपहरी, मरुथल की मृगतृष्णा सड़कों पर पसरी। धू-धू कर धधक रहे किरणों के शोले, उग आए धरती के  पांव पर फफोले। ...
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दोहे

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सगे पराये बन गये, दुर्दिन की है मार, छाया भी संग छोड़ दे, जब आए अंधियार। कान आंख दो दो मिले, जिह्वा केवल एक, अधिक सुनें देखें मगर, बो...
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रंगमंच

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हित रक्षक भक्षक बन जाए क्या कर लोगे, सुख ही दुखदायक बन जाए क्या कर लोगे। बहिरंतर में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व सजाए मित्र कभी निंदक बन ज...
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अब हमारे शहर का दस्तूर है यह

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घबराइये मत इस ज़माने की चलन से चौंकिये मत, कीजिये कुछ, थामकर सिर बैठिये मत। आज गलियों की हवा कुछ गर्म सी है, भूलकर भी खिड़कियों ...
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महेन्‍द्र वर्मा
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