शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
(Move to ...)
Home
▼
दोहे: तन-मन-धन-जन-अन्न
›
जहाँ-जहाँ पुरुषार्थ है, प्रतिभा से संपन्न, संपति पाँच विराजते, तन-मन-धन-जन-अन्न। दुख है जनक विराग का, सुख से उपजे राग, जो सुख-दुख से...
38 comments:
झिलमिल झिलमिल झिलमिल
›
दीपों से आलोकित डगर-डगर, द्वार-द्वार। पुलकित प्रकाश-पर्व, तम का विनष्ट गर्व, यत्र-तत्र छूट रहे जुग-जुगनू के अनार। नव तारों के सं...
41 comments:
संत कवि परसराम
›
संत कवि परसराम का जन्म बीकानेर के बीठणोकर कोलायत नामक स्थान पर हुआ था। इनका जन्म वर्ष संवत 1824 है और इनके देहावसान का काल पौष कृष्ण 3, सं...
26 comments:
कहाँ तुम चले गए / 10.10.2011
›
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है कलाकार ईश्वर की सबसे प्यारी संतान होता है। हे ईश्वर ! तुम जब भी अपनी बनाई दुनिया के तमा...
41 comments:
देहि सिवा बर मोहि इहै
›
गुरु गोविंदसिंह जी विरचित सुविख्यात ग्रंथ ‘श्री दसम ग्रंथ‘ एक अद्वितीय आध्यात्मिक और धार्मिक साहित्य है। इस ग्रंथ में गुरु जी ने लगभग ...
29 comments:
दोहे : गूँजे तार सितार
›
कभी सुनाती लोरियाँ, कभी मचातीं शोर, जीवन सागर साधता, इन लहरों का जोर। कटुक वचन अरु क्रोध में, चोली दामन संग, एक बढ़े दूसर बढ़े, दोनों...
49 comments:
नवगीत
›
आश्विन के अंबर में रंगों की टोली, सूरज की किरणों ने पूर दी रंगोली। नेह भला अपनों का, मीत बना सपनों का, संध्या की आंखों में चमकती ...
38 comments:
कुछ लोग
›
सच्चाई की बात करो तो, जलते हैं कुछ लोग, जाने कैसी-कैसी बातें, करते हैं कुछ लोग। धूप, चांदनी, सीप, सितारे, सौगातें हर सिम्त, फिर भी ...
40 comments:
‹
›
Home
View web version