शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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हँसी बहुत अनमोल
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कर प्रयत्न राखें सभी, मन को सदा प्रसन्न, जो उदास रहते वही, सबसे अधिक विपन्न। गहन निराशा मौत से, अधिक है ख़तरनाक, धीरे-धीरे जि़ंदगी, कर देत...
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दो कविताएँ
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1. मैं ही सही हूँ शेष सब गलत हैं ऐसा तो सभी सोचते हैं लेकिन ऐसा सोचने वाले कुछ लोग अनुभव करते हैं अतिशय दुख का क्योंकि शेष सब लोग लगे हुए...
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सूरज: सात दोहे
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सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग, बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग। भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव, पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे ...
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हर तरफ
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वायदों की बड़ी बोलियाँ हर तरफ, भीड़ में बज रही तालियाँ हर तरफ। गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई, घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ। वो गया था अमन...
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बस इतनी सी बात
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जल से काया शुद्ध हो, सत्य करे मन शुद्ध, ज्ञान शुद्ध हो तर्क से, कहते सभी प्रबुद्ध। धरती मेरा गाँव है, मानव मेरा मीत, सारा जग परिवार है, ग...
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धूप-हवा-जल-धरती-अंबर
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किसे कहोगे बुरा-भला है, हर दिल में तो वही ख़ुदा है। खोजो उस दाने को तुम भी, जिस पर तेरा नाम लिखा है। शायद रोया बहुत देर तक, उसका चेहरा नि...
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जहाँ प्रेम सत्कार हो
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युवा-शक्ति मिल कर करे, यदि कोई भी काम, मिले सफलता हर कदम, निश्चित है परिणाम। जिज्ञासा का उदय ही, ज्ञान प्राप्ति का स्रोत, इसके बिन जो भ...
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मौन का सहरा हुआ हूँ
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आग से गुज़रा हुआ हूँ, और भी निखरा हुआ हूँ। उम्र भर के अनुभवों के, बोझ से दुहरा हुआ हूँ। देख लो तस्वीर मेरी, वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हू...
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