शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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चींटी के पग
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सहमी-सी है झील शिकारे बहुत हुए, और उधर तट पर मछुवारे बहुत हुए । चाँद सरीखा कुछ तो टाँगो टहनी पर, जलते-बुझते जुगनू तारे बहुत हुए । ...
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मन के नयन
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मन के नयन खुले हैं जब तक, सीखोगे तुम जीना तब तक । दीये को कुछ ऊपर रख दो, पहुँचेगा उजियारा सब तक । शोर नहीं बस अनहद से ही, सदा पहुँच जाए...
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श्वासों का अनुप्रास
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सच को कारावास अभी भी, भ्रम पर सबकी आस अभी भी । पानी ही पानी दिखता पर, मृग आँखों में प्यास अभी भी । मन का मनका फे...
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यूँ ही
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यादों के कुछ ताने-बाने और अकेलापन, यूँ ही बीत रहीं दिन-रातें और अकेलापन। ख़ुद से ख़ुद की बातें शायद ख़त्म कभी न हों, कुछ कड़वी कुछ मीठी याद...
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अब न कहना
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सबने उतना पाया जिसका हिस्सा जितना, क्या मालूम, मेरे भीतर कुछ मेरा है या सब उसका, क्या मालूम । कि़स्मत का आईना बेशक होता है बेहद नाज़ुक, ...
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ले जा गठरी बाँध
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वक़्त घूम कर चला गया है मेरे चारों ओर, बस उन क़दमों का नक़्शा है मेरे चारों ओर । सदियों का कोलाहल मन में गूँज रहा लेकिन, कितना सन्नाटा पसरा...
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शीत - सात छवियाँ
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धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव, ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव । रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद, पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर...
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उजाले का स्रोत
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सदियों से ‘अँधेरे’ में रहने के कारण ‘वे’ अँधेरी गुफाओं में रहने वाली मछलियों की तरह अपनी ‘दृष्टि’ खो चुके हैं । उनकी देह में अँधेरे से ग्रस...
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