समर भूमि संसार है

                                           

 



दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।


हो अतीत चाहे विकट, दुखदायी संजाल,
पर उसकी यादें बहुत, होतीं मधुर रसाल।


विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।


ज्ञान और ईमान अब, हुए महत्ताहीन,
छल-प्रपंच करके सभी, धन के हुए अधीन।


जैसे-जैसे लाभ हो , वैसे बढ़ता लोभ,
जब अतिशय हो लोभ तब, मन में उठता क्षोभ।


भूत और भवितव्य पर, नहीं हमारा जोर,
सुलझाते चलते रहो, वर्तमान की डोर।


समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर,
       मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर।

                                                                              -महेन्द्र वर्मा  










6 comments:

उर्मिला सिंह said...

वाह बहुत सुन्दर रचना।

जिज्ञासा सिंह said...

बहुत सार्थक और प्रेरक दोहे ।

Insurance Baboo said...

वाह! लाजवाब!!
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
बहुत ही सुंदर लिंक धन्यवाद आपका
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सुशील कुमार जोशी said...

वाह

How do we know said...

बहुत, बहुत सार्थक दोहे! एक एक मोती जैसा है!

Technical Prokash said...

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