ना सच है ना झूठा है,
जीवन केवल सपना है।
कुछ सोए कुछ जाग रहे,
अपनी-अपनी दुनिया है।
सत्य बसा अंतस्तल में,
बाहर मात्र छलावा है।
दुख ना हो तो जीवन में,
सूनापन सा लगता है।
मुट्ठी खोलो देख जरा,
क्या खोया क्या पाया है।
गर विवेक तुममें नहीं,
मानव क्यूं कहलाता है।
प्रेम कहीं देखा तुमने,
कहते हैं परमात्मा है।
-महेन्द्र वर्मा
जीवन केवल सपना है।
कुछ सोए कुछ जाग रहे,
अपनी-अपनी दुनिया है।
सत्य बसा अंतस्तल में,
बाहर मात्र छलावा है।
दुख ना हो तो जीवन में,
सूनापन सा लगता है।
मुट्ठी खोलो देख जरा,
क्या खोया क्या पाया है।
गर विवेक तुममें नहीं,
मानव क्यूं कहलाता है।
प्रेम कहीं देखा तुमने,
कहते हैं परमात्मा है।
-महेन्द्र वर्मा