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बेवजह







मुश्किलों को क्यों हवा दी बेवजह,
इल्म की क्यों बंदगी की बेवजह ।

हाथ   में   गहरी  लकीरें  दर्ज  थीं,
छल किया तक़़दीर ने ही बेवजह ।

सुबह ही थी शाम कैसे यक.ब.यक,
वक़्त  ने   की  दुश्मनी.सी बेवजह ।

वो  नहीं  पीछे   कभी  भी  देखता,
आपने  आवाज़  क्यों  दी बेवजह ।

धूप  थी, मैं  था  मगर साया न था,
देखता  हूँ  राह  किस की बेवजह ।


-महेन्द्र वर्मा