शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
(Move to ...)
Home
▼
ग़ज़ल
›
अक्स निशाने पर था रक्खा किसी और का, शीशा टूट-टूट कर बिखरा किसी और का। दरवाजे पर देख मुझे मायूस हुए वो, शायद उनको इंतज़ार था किसी...
35 comments:
उतना ही सबको मिलना है
›
ग़ज़ल उतना ही सबको मिलना है, जिसके हिस्से में जितना है। क्यूं ईमान सजा कर रक्खा, उसको तो यूं ही लुटना है। ढोते रहें सलीबें अपनी...
42 comments:
गीतिका
›
एक दिया तो जल जाने दे, सूरज को कुछ सुस्ताने दे। पलट रहा क्यूं आईने को, जो सच है वो दिखलाने दे। एक सिरा तो थामो तुम भी, उलझा है...
35 comments:
गीत मैं गाने लगा हूं
›
गीत मैं गाने लगा हूं, स्वप्न फिर बुनने लगा हूं। तमस से मैं जूझता था, कुछ न मन को सूझता था, हृदय के सूने गगन में, सूर्य सा जलने लग...
42 comments:
गीतिका
›
बंद होती सभी खिड़कियां देखिए, ढा रही हैं कहर आंधियां देखिए। याद मुझको करे कोई्र ऐसा नहीं, आ रही हैं मगर हिचकियां देखिए। भीड़ को...
32 comments:
जीवन
›
स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन, हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन। श्रम हुआ निष्फल, कभी पुरुषार्थ आहत, नियति के आक्रोश से स्तब्ध ...
32 comments:
ख़ाक है संसार
›
बुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा, है कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा। वक़्त की फिरकी उफ़क पर जा रही, छोड़ती अपनी निशानी, या ख़ुदा। पांव ध...
40 comments:
ज़िदगी से सुर मिलाना चाहिए
›
अब अंधेरे को डराना चाहिए फिर कोई सूरज उगाना चाहिए। शोर से ऊबी गली ने फिर कहा झींगुरों को गुनगुनाना चाहिए। जुगनुओं...
42 comments:
‹
›
Home
View web version