शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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ग़ज़ल

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अक्स निशाने पर था रक्खा किसी और का, शीशा टूट-टूट कर बिखरा किसी और का। दरवाजे  पर  देख  मुझे  मायूस हुए वो,  शायद उनको इंतज़ार था किसी...
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उतना ही सबको मिलना है

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ग़ज़ल उतना ही सबको मिलना है, जिसके हिस्से में जितना है। क्यूं ईमान सजा कर रक्खा, उसको तो यूं ही लुटना है। ढोते रहें सलीबें अपनी...
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गीतिका

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एक दिया तो जल जाने दे, सूरज को कुछ सुस्ताने दे। पलट रहा क्यूं आईने को, जो सच है वो दिखलाने दे। एक सिरा तो थामो तुम भी, उलझा है...
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गीत मैं गाने लगा हूं

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गीत मैं गाने लगा हूं, स्वप्न फिर बुनने लगा हूं। तमस से मैं जूझता था, कुछ न मन को सूझता था, हृदय के सूने गगन में, सूर्य सा जलने लग...
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गीतिका

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बंद होती सभी खिड़कियां देखिए, ढा रही हैं कहर आंधियां देखिए। याद मुझको करे कोई्र ऐसा नहीं, आ रही हैं मगर हिचकियां देखिए। भीड़ को...
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जीवन

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स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन, हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन। श्रम हुआ निष्फल, कभी पुरुषार्थ आहत, नियति के आक्रोश से स्तब्ध ...
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ख़ाक है संसार

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बुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा, है कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा। वक़्त की फिरकी उफ़क पर जा रही, छोड़ती अपनी निशानी, या ख़ुदा। पांव ध...
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ज़िदगी से सुर मिलाना चाहिए

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अब अंधेरे को डराना चाहिए फिर कोई सूरज उगाना चाहिए। शोर से ऊबी गली ने फिर कहा झींगुरों को गुनगुनाना चाहिए। जुगनुओं...
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महेन्‍द्र वर्मा
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