शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
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नवगीत
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पोखर को सोख रही जेठ की दुपहरी, मरुथल की मृगतृष्णा सड़कों पर पसरी। धू-धू कर धधक रहे किरणों के शोले, उग आए धरती के पांव पर फफोले। ...
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दोहे
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सगे पराये बन गये, दुर्दिन की है मार, छाया भी संग छोड़ दे, जब आए अंधियार। कान आंख दो दो मिले, जिह्वा केवल एक, अधिक सुनें देखें मगर, बो...
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रंगमंच
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हित रक्षक भक्षक बन जाए क्या कर लोगे, सुख ही दुखदायक बन जाए क्या कर लोगे। बहिरंतर में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व सजाए मित्र कभी निंदक बन ज...
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अब हमारे शहर का दस्तूर है यह
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घबराइये मत इस ज़माने की चलन से चौंकिये मत, कीजिये कुछ, थामकर सिर बैठिये मत। आज गलियों की हवा कुछ गर्म सी है, भूलकर भी खिड़कियों ...
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स्वामी रामतीर्थ
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कौन थे वे ? ‘मेरे लिए तो वृक्ष की छाया मकान का काम दे सकती है,राख मेरी पोशाक का, सूखी धरती मेरे बिस्तर का और दो-चार ...
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संत ललित किशोरी
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(हमारे देश में ऐसा भी समय था जब लोग लाखों-करोड़ों की पैतृक संपत्ति को त्याग कर सन्यासी बन जाया करते थे और आज का समय है जब लोग तथाकथित सन्य...
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संत बुल्लेशाह
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ना मैं मुल्ला ना मैं काजी लाहौर जिले के पंडील गांव में विक्रम संवत 1737 में संत बुल्लेशाह का ज...
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नारायण स्वामी
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दो दिन कौ मेहमान नारायण स्वामी का जन्म विक्रम संवत 1886 में रावलपिंडी में हुआ। ये बाल्यावस्था से ही संतों और भगवद्भक्तों में विशेष रु...
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