शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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बस इतनी सी बात

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जल से काया शुद्ध हो, सत्य करे मन शुद्ध, ज्ञान शुद्ध हो तर्क से, कहते सभी प्रबुद्ध। धरती मेरा गाँव है, मानव मेरा मीत, सारा जग परिवार है, ग...
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धूप-हवा-जल-धरती-अंबर

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किसे कहोगे बुरा-भला है, हर दिल में तो वही ख़ुदा है। खोजो उस दाने को तुम भी, जिस पर तेरा नाम लिखा है। शायद रोया बहुत देर तक, उसका चेहरा नि...
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जहाँ प्रेम सत्कार हो

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युवा-शक्ति मिल कर करे, यदि कोई भी काम, मिले सफलता हर कदम, निश्चित है परिणाम। जिज्ञासा का उदय ही, ज्ञान प्राप्ति का स्रोत, इसके बिन जो भ...
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मौन का सहरा हुआ हूँ

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आग से गुज़रा हुआ हूँ, और भी निखरा हुआ हूँ। उम्र भर के अनुभवों के, बोझ से दुहरा हुआ हूँ। देख लो तस्वीर मेरी, वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हू...
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दोहे

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बाहर के सौंदर्य को , जानो बिल्कुल व्यर्थ, जो अंतर्सौंदर्य है, उसका ही कुछ अर्थ। समय नष्ट मत कीजिए, गुण शंसा निकृष्ट, जीवन में अपनाइए, ...
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ग़ज़ल: पलकों के लिए

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आँख में तिरती रही उम्मीद सपनों के लिए, गीत कोई गुनगुनाओ आज पलकों के लिए। आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई, धूप के टुकड़े कहीं ...
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ग़ज़ल

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अंधकार को डरा रौशनी तलाश कर, ‘मावसों की रात में चांदनी तलाश कर। बियाबान चीखती खामोशियों का ढेर है, जल जहां-जहां मिले जि़ंदगी तलाश कर।...
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नवगीत

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पल-पल छिन-छिन बीत रहा है, जीवन से कुछ रीत रहा है।                     सहमे-सहमे से सपने हैं,                     आशा के अपरूप,       ...
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महेन्‍द्र वर्मा
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