आत्मा का आहार


दुनिया कैसी हो गई, छोड़ें भी यह जाप,
सब अच्छा हो जायगा,खुद को बदलें आप।

दोष नहीं गुण भी जरा, औरों की पहचान,
अपनी गलती खोजिए, फिर पाएं सम्मान।

धन से यदि सम्पन्न हो, पर गुण से कंगाल,
इनका संग न कीजिए, त्याग करें तत्काल।

कवच नम्रता का पहन, को कर सके बिगार,
रुई कभी कटती नहीं, वार करे तलवार।

सद्ग्रंथों को जानिए, आत्मा का आहार,
मन के दोषों का करे, बिन औषध परिहार।

जो करता अन्याय है, वह करता अपराध,
पर सहना अन्याय का, वह अपराध अगाध।
                                                                        -महेन्द्र वर्मा

44 comments:

Rakesh Kumar said...

सचमुच आपने आत्मा का अति उत्तम आहार
प्रस्तुत किया है.

हर एक दोहा बहुत सुन्दर सीख दे रहा है.

खुद को बदलने से ही जग भी भी बदल जाता है.

बहुत बहुत आभार,महेंद्र जी.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सद्ग्रंथों को जानिए, आत्मा का आहार,
मन के दोषों का करे, बिन औषध परिहार।

बिल्कुल, अनुकरणीय विचार लिए पंक्तियाँ

Bharat Bhushan said...

वाक़ई आत्मा का आहार आपने दिया है. हर दोहा मन को पुष्ट करता है. आभार आपका महेंद्र जी.

समय चक्र said...

सद्ग्रंथों को जानिए, आत्मा का आहार,
मन के दोषों का करे, बिन औषध परिहार ।


महेंद्र जी रचना अभिव्यक्ति बहुत शानदार है
आभार ...

ANULATA RAJ NAIR said...

दोष नहीं गुण भी जरा, औरों की पहचान,
अपनी गलती खोजिए, फिर पाएं सम्मान।

वैसे कठिन है बड़ा....

बहुत सुन्दर दोहे...
सादर
अनु

रश्मि प्रभा... said...

धन से यदि सम्पन्न हो, पर गुण से कंगाल,
इनका संग न कीजिए, त्याग करें तत्काल।...

वरना आप लगेंगे जंजाल .... सही कहा

राजेश सिंह said...

गहरे मर्म लिए बेहतरीन रचना .बधाई वर्माजी

Kunwar Kusumesh said...

सभी दोहे लाजवाब है.

शिवनाथ कुमार said...

दोष नहीं गुण भी जरा, औरों की पहचान,
अपनी गलती खोजिए, फिर पाएं सम्मान।

कवच नम्रता का पहन, को कर सके बिगार,
रुई कभी कटती नहीं, वार करे तलवार।

हरेक दोहे एक से बढ़कर एक .....
सुंदर सीख भरे ...
सादर !!

Shalini kaushik said...

सही कहा आपने .पूरी तरह से सहमत जीवन के कुछ कोमल दृश्यों को शब्दों में सहेजती अच्छी कविता। !..बहुत सार्थक प्रस्तुति. रफ़्तार जिंदगी में सदा चलके पायेंगेंऔर देखें मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत ख़ूब!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-956 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

Amrita Tanmay said...

बहुत सुन्दर दोहे.. आत्मा का सुन्दर आहार..आभार.

India Darpan said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक अग्रिम शुभकामनाएँ!!


इंडिया दर्पण
पर भी पधारेँ।

Shikha Kaushik said...

very nice post .thanks .
THIS IS MISSION LONDON OLYMPIC
INDIAN WOMAN

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

दोष नहीं गुण भी जरा, औरों की पहचान,
अपनी गलती खोजिए, फिर पाएं सम्मान।

एक से बढ़कर एक लाजबाब दोहे,,,,,,

RECENT POST,,,इन्तजार,,,

virendra sharma said...

दोहों में दर्शन और सीख ,ज़िन्दगी का आदर्श पिरोया है आपने .बधाई .

Anupama Tripathi said...

दुनिया कैसी हो गई, छोड़ें भी यह जाप,
सब अच्छा हो जायगा,खुद को बदलें आप।
सार्थक ...सुंदर रचना ..

Sunil Kumar said...

सभी दोहे शिक्षाप्रद बहुत ही सुंदर बधाई

प्रतिभा सक्सेना said...

जो करता अन्याय है, वह करता अपराध,
पर सहना अन्याय का, वह अपराध अगाध।
- यही समझ आ जाय तो दुनिया बदल जाये !

Rahul Singh said...

बढि़या दोहे.

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...
This comment has been removed by the author.
Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

खुद के अंदर झाँकिए ...स्वर्ग धरती पर ही पाइए...
बहुत प्रेरणापूर्ण रचना !!!

सदा said...

बहुत ही सार्थकता लिए सटीक प्रस्‍तुति ...आभार

Ramakant Singh said...

धन से यदि सम्पन्न हो, पर गुण से कंगाल,
इनका संग न कीजिए, त्याग करें तत्काल

हर एक दोहा बहुत सुन्दर

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही अच्छे दोहे भाई महेंद्र जी |आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सभी दोहे सार्थक सीख देते हुये .... आभार

ZEAL said...

सद्ग्रंथों को जानिए, आत्मा का आहार,
मन के दोषों का करे, बिन औषध परिहार।...

Precious couplets...

.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

दुनिया कैसी हो गई, छोड़ें भी यह जाप,
सब अच्छा हो जायगा,खुद को बदलें आप।

एक से बढ़कर एक है, हर दोहा श्रीमान
क्या ही उत्तम सीख है,क्या ही उत्तम ज्ञान |

Maheshwari kaneri said...

गहरे मर्म लिए एक अनुकरणीय विचार पूर्ण सुन्दर रचना...अभार

Anjani Kumar said...

सारे दोहे प्रेरक हैं .....तथाकथित मानवों को मनुजता का सही पाठ पढ़ाते हुए
आभार

Vandana Ramasingh said...

दुनिया कैसी हो गई, छोड़ें भी यह जाप,
सब अच्छा हो जायगा,खुद को बदलें आप।

कवच नम्रता का पहन, को कर सके बिगार,
रुई कभी कटती नहीं, वार करे तलवार।

सभी दोहे गहराई लिये हुए

Satish Saxena said...

सब अच्छा हो जायगा,खुद को बदलें आप...

संग्रह के लायक रचना !

निवेदिता श्रीवास्तव said...

अनुकरणीय विचार पूर्ण रचना .......

Kailash Sharma said...

बहुत खूब! सभी दोहे एक सार्थक संदेश देते हुए..

मनोज कुमार said...

सद्ग्रंथों को जानिए, आत्मा का आहार,
मन के दोषों का करे, बिन औषध परिहार।
मन को तृप्त करते दोहे।

लोकेन्द्र सिंह said...

सभी पंक्तियाँ गहरी सीख देती हैं.

mark rai said...

सद्ग्रंथों को जानिए, आत्मा का आहार,
मन के दोषों का करे, बिन औषध परिहार।

सुन्दर रचना...अभार!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या खुबसूरत दोहे सर...
सादर.

दिगम्बर नासवा said...

धन से यदि सम्पन्न हो, पर गुण से कंगाल,
इनका संग न कीजिए, त्याग करें तत्काल ...

सभी दोहे लाजवाब ... गहरा दर्शन समेटे ...

डॉ. जेन्नी शबनम said...

सभी दोहे बहुत अर्थपूर्ण और संदेशप्रद, धन्यवाद.

Naveen Mani Tripathi said...

कवच नम्रता का पहन, को कर सके बिगार,
रुई कभी कटती नहीं, वार करे तलवार।

सद्ग्रंथों को जानिए, आत्मा का आहार,
मन के दोषों का करे, बिन औषध परिहार।

bahut hi sundar rachana ....sadar abhar.

Sanjay kumar said...

बहुत ही सुंदर रचनाएँ,सभी दोहे आनंदित करने वाले हैं।

Sanjay Kumar said...
This comment has been removed by the author.
Sanjay Kumar said...

Hlo sir I want please remove my comment becouse it's doing effect on my website.🙏🙏