शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
(Move to ...)
Home
▼
Showing posts with label
ग़ज़ल
.
Show all posts
Showing posts with label
ग़ज़ल
.
Show all posts
पूजा से पावन
›
जाने -पहचाने बरसों के फिर भी वे अनजान लगे, महफ़िल सजी हुई है लेकिन सहरा सा सुनसान लगे । ...
11 comments:
ऊबते देखे गए
›
भीड़ में अस्तित्व अपना खोजते देखे गए, मौन थे जो आज तक वे चीखते देखे गए। आधुनिकता के नशे में रात दिन जो चूर थे, ऊब कर फिर ज़िंदगी से भा...
11 comments:
कुछ और
›
मेरा कहना था कुछ और, उसने समझा था कुछ और । धुँधला-सा है शाम का सफ़र, सुबह उजाला था कुछ और । गाँव जला तो बरगद रोया, उसका दुखड़ा था कुछ और । अ...
5 comments:
अपने हिस्से की बूँदें
›
तूफ़ाँ बनकर वक़्त उमड़ उठता है अक्सर, खोना ही है जो कुछ भी मिलता है अक्सर । उसके माथे पर कुछ शिकनें-सी दिखती हैं, मेरी साँसों का हिसाब र...
11 comments:
मैं हुआ हैरान
›
घर कभी घर थे मगर अब ईंट पत्थर हो गए, रेशमी अहसास सारे आज खद्दर हो गए। वक़्त की रफ़्तार पहले ना रही इतनी विकट, साल के सारे महीने ज्यूं दिसंब...
12 comments:
घर की चौखट
›
गूँज उठा पैग़ाम आखि़री, चलो ज़रा, ‘जो बोया था काट रहा हूँ, रुको ज़रा।’ हर बचपन में छुपे हुए हैं हुनर बहुत, आहिस्ता से चाबी उनमें भरो ज़रा। ...
11 comments:
मंजर कैसे-कैसे
›
मंजर कैसे-कैसे देखे, कुछ हँस के कुछ रो के देखे। बड़ी भीड़ थी, सुकरातों के- ऐब ढूंढते-फिरते देखे। घर के भीतर घर, न जाने...
16 comments:
ख़ामोशी
›
तन्हाई में जिनको सुकून-सा मिलता है, आईना भी उनको दुश्मन-सा लगता है। दिल में उसके चाहे जो हो तुझको क्या, होठों से तो तेरा नाम जपा करता ह...
9 comments:
बुरा लग रहा था
›
कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था, हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था। मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी, किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था। ये ...
8 comments:
तेरा-मेरा-सब का
›
सबसे ज्यादा अपना है, वह जो मेरा साया है। मन की आंखें खुल जातीं, दिल में अगर उजाला है। कुछ आखर कुछ मौन बचा, यह मेरा सरमाया है। दुन...
11 comments:
ग़ज़ल
›
उतना ही सबको मिलना है, जिसके हिस्से में जितना है। क्यूं ईमान सजा कर रक्खा, उसको तो यूं ही लुटना है। ढोते रहें सलीबें अपनी, जिन...
6 comments:
जिस पर तेरा नाम लिखा हो
›
लम्हा एक पुराना ढूंढ, फिर खोया अफ़साना ढूंढ। वे गलियां वे घर वे लोग, गुज़रा हुआ ज़माना ढूंढ। भला मिलेगा क्या गुलाब से, बरगद ए...
7 comments:
नेह का दीप
›
सहमे से हैं लोग न जाने किसका डर है, यही नज़ारा रात यही दिन का मंजर है। दुनिया भर की ख़ुशियां नादानों के हिस्से, अल्लामा को दुख सहते देखा अक...
16 comments:
क्या हुआ
›
बाग दरिया झील झरने वादियों का क्या हुआ, ढूंढते थे सुर वहीं उन माझियों का क्या हुआ। कह रहे कुछ लोग उनके साथ है कोई नहीं, हर कदम चलती हुई परछ...
34 comments:
सोचिए ज़रा
›
कितनी लिखी गई किताब सोचिए ज़रा, क्या मिल गए सभी जवाब सोचिए ज़रा। काँटों बग़ैर ज़िंदगी कितनी अजीब हो, अब खिलखिला रहे गुलाब सोचिए ज़रा। ज़र्रा है...
39 comments:
उम्र भर
›
जख़्म सीने में पलेगा उम्र भर, गीत बन-बन कर झरेगा उम्र भर। घर का हर कोना हुआ है अजनबी, आदमी ख़ुद से डरेगा उम्र भर। जो अंधेरे को लगा लेते ग...
39 comments:
हर तरफ
›
वायदों की बड़ी बोलियाँ हर तरफ, भीड़ में बज रही तालियाँ हर तरफ। गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई, घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ। वो गया था अमन...
35 comments:
धूप-हवा-जल-धरती-अंबर
›
किसे कहोगे बुरा-भला है, हर दिल में तो वही ख़ुदा है। खोजो उस दाने को तुम भी, जिस पर तेरा नाम लिखा है। शायद रोया बहुत देर तक, उसका चेहरा नि...
36 comments:
मौन का सहरा हुआ हूँ
›
आग से गुज़रा हुआ हूँ, और भी निखरा हुआ हूँ। उम्र भर के अनुभवों के, बोझ से दुहरा हुआ हूँ। देख लो तस्वीर मेरी, वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हू...
46 comments:
ग़ज़ल: पलकों के लिए
›
आँख में तिरती रही उम्मीद सपनों के लिए, गीत कोई गुनगुनाओ आज पलकों के लिए। आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई, धूप के टुकड़े कहीं ...
43 comments:
›
Home
View web version