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गीतिका
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तितलियों का ज़िक्र हो
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प्यार का, अहसास का, ख़ामोशियों का ज़िक्र हो, महफ़िलों में अब ज़रा तन्हाइयों का ज़िक्र हो। मीर, ग़ालिब की ग़ज़ल या, जिगर के कुछ शे‘र ह...
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श्वासों का अनुप्रास
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सच को कारावास अभी भी, भ्रम पर सबकी आस अभी भी । पानी ही पानी दिखता पर, मृग आँखों में प्यास अभी भी । मन का मनका फे...
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ले जा गठरी बाँध
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वक़्त घूम कर चला गया है मेरे चारों ओर, बस उन क़दमों का नक़्शा है मेरे चारों ओर । सदियों का कोलाहल मन में गूँज रहा लेकिन, कितना सन्नाटा पसरा...
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मौसम की मक्कारी
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हरियाली ने कहा देख लो मेरी यारी कुछ दिन और, सहना होगा फिर उस मौसम की मक्कारी कुछ दिन और । बाँस थामकर नाच रहा था छोटा बच्चा रस्सी पर, दिख...
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जाने किसकी नज़र लग गई
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कभी छलकती रहती थीं बूँदें अमृत की धरती पर, दहशत का जंगल उग आया कैसे अपनी धरती पर । सभी मुसाफिर इस सराय के आते-जाते रहते हैं, आस नहीं...
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शुभ की कामना
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घर का कोना-कोना उजला हुआ करे तो अच्छा हो, मन के भीतर में भी दीपक जला करे तो अच्छा हो। कहते हैं कुछ लोग कि कोई ऊपर वाला सुनता है, तेरा मेरा...
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डरता है अंधियार
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जगमग हर घर-द्वार कि अब दीवाली आई, पुलकित है संसार कि अब दीवाली आई। दुनिया के कोने-कोने में दीप जले हैं, डरता है अंधियार कि ...
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नए वर्ष से अनुनय
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ढूँढो कोई कहाँ पर रहती मानवता, मानव से भयभीत सहमती मानवता। रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय, इसीलिए आहत सी लगती मानवता। मानव ने मानव का लहू...
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गीतिका
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यादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है, ख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है। जाने कैसी चोट लगी है अंतःतल में, टूटे दिल को आस बंधाना बह...
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सपना
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ना सच है ना झूठा है, जीवन केवल सपना है। कुछ सोए कुछ जाग रहे, अपनी-अपनी दुनिया है। सत्य बसा अंतस्तल में, बाहर मात्र छलावा है। दुख न...
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गीतिका : दिन
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सूरज का हरकारा दिन, फिरता मारा-मारा दिन। कहा सुबह ने हँस लो थोड़ा, फिर रोना है सारा दिन। जिनकी किस्मत में अँधियारा, तब क्या बने...
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देश हमारा
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, आलोकित हो दिग्दिगंत, वह दीप जलाएं, देश हमारा झंकृत हो, वह साज बजाएं। जन्म लिया हमने, भारत की पुण्य धरा पर, सकल विश्व को इसका गौरव-ग...
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गीतिका : बरसात में
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धरणि धारण कर रही, चुनरी हरी बरसात में, साजती शृंगार सोलह, बावरी बरसात में। रोक ली है राह काले, बादलों ने किरण की, पीत मुख वह झाँक...
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चकित हुआ हूं
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तिक्त हुए संबंध सभी मैं व्यथित हुआ हूं, नियति रूठ कर चली गई या, भ्रमित हुआ हूं। दुर्दिन में भी बांह छुड़ा कर चल दे ऐसे, मित्रों के...
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मानवता
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ढूंढूं कहां, कहां खो जाती मानवता, अभी यहीं थी बैठी रोती मानवता। रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय, इसीलिए आहत सी होती मानवता। मानव ...
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रंगमंच
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हित रक्षक भक्षक बन जाए क्या कर लोगे, सुख ही दुखदायक बन जाए क्या कर लोगे। बहिरंतर में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व सजाए मित्र कभी निंदक बन ज...
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गीतिका
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रात ने जब-जब किया श्रृंगार है, चांद माथे पर सजा हर बार है। ओस, जैसे अश्रु की बूंदें झरीं, चांदनी रोती रही सौ बार है। नीलिमा लिपटी...
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जीवन
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स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन, हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन। श्रम हुआ निष्फल, कभी पुरुषार्थ आहत, नियति के आक्रोश से स्तब्ध ...
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इंसान की बातें करें
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नूतन वर्ष की प्रथम रचना सृजन का संकल्प लें, निर्माण की बातें करें। कामनाएं शुभ करें, कल्याण की बातें करें। जन्म लेता है उजाला, हर ...
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सारी दुनिया
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तेरा मुझसे क्या नाता है, पूछ रही है सारी दुनिया, अपनी मर्जी का मालिक बन, अड़ी खड़ी है सारी दुनिया। बारूदी पंखुड़ी लगा कर, का...
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