शाश्वत शिल्प
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समर भूमि संसार है
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दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद, लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद। हो अतीत चाहे विक...
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अनुभव का उपहार
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समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर, मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर। मुँह पर ढकना दीजिए, वक्ता होए शांत, मन के मुँह को ढाँकना, कारज...
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बरगद माँगे छाँव
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सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग, बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग। भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव, पानी प्यासा हो गया, बरगद माँ...
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औषधि ये ही तीन हैं
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श्रेष्ठ विचारक से अगर, करना हो संवाद, उनकी पुस्तक बांचिए, भीतर हो अनुनाद। जिनकी सोच अशक्त है, वे होते वाचाल, उत्तम जिनकी सोच है, नहीं बजाते...
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श्रद्धा की आंखें नहीं
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जंगल तरसे पेड़ को, नदिया तरसे नीर, सूरज सहमा देख कर, धरती की यह पीर । मृत-सी है संवेदना, निर्ममता है शेष, मानव ही करता रहा, मानवता से द्वेष...
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सद्गुण ही पर्याप्त है
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पुष्पगंध विसरण करे, चले पवन जिस छोर, किंतु कीर्ति गुणवान की, फैले चारों ओर । ग्रंथ श्रेष्ठ गुरु जानिए, हमसे कुछ नहिं लेत, बिना क्र...
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बिना बोले
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विपत बनाती मनुज को, दुर्बल न बलवान, वह तो केवल यह कहे, क्या है तू, ये जान। कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप, सहज विवेकी बन रहें, कम ह...
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वर्तमान की डोर
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ज्ञान और ईमान अब, हुए महत्ताहीन, छल-प्रपंच करके सभी, धन के हुए अधीन। बिना परिश्रम ही किए, यदि धन होता प्राप्त, वैचारिक उद्भ्रांत से,...
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मृत्यु के निकट
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आत्म प्रशंसा त्याज्य है, पर निंदा भी व्यर्थ, दोनों मरण समान हैं, समझें इसका अर्थ। एक-एक क्षण आयु का, सौ-सौ रत्न समान, जो खोते हैं व...
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दुख का हो संहार
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उद्यम-साहस-धीरता, बुद्धि-शक्ति-पुरुषार्थ, ये षट्गुण व्याख्या करें, मानव के निहितार्थ। जब स्वभाव से भ्रष्ट हो, मनुज करे व्यवहार, ...
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आत्मा का आहार
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दुनिया कैसी हो गई, छोड़ें भी यह जाप, सब अच्छा हो जायगा,खुद को बदलें आप। दोष नहीं गुण भी जरा, औरों की पहचान, अपनी गलती खोजिए, फिर पाएं सम्म...
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आगत की चिंता नहीं
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धनमद-कुलमद-ज्ञानमद, दुनिया में मद तीन, अहंकारियों से मगर, मति लेते हैं छीन। गुणी-विवेकी-शीलमय, पाते सबसे मान, मूर्ख किंतु करते सदा, उनका ...
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हँसी बहुत अनमोल
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कर प्रयत्न राखें सभी, मन को सदा प्रसन्न, जो उदास रहते वही, सबसे अधिक विपन्न। गहन निराशा मौत से, अधिक है ख़तरनाक, धीरे-धीरे जि़ंदगी, कर देत...
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सूरज: सात दोहे
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सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग, बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग। भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव, पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे ...
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बस इतनी सी बात
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जल से काया शुद्ध हो, सत्य करे मन शुद्ध, ज्ञान शुद्ध हो तर्क से, कहते सभी प्रबुद्ध। धरती मेरा गाँव है, मानव मेरा मीत, सारा जग परिवार है, ग...
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जहाँ प्रेम सत्कार हो
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युवा-शक्ति मिल कर करे, यदि कोई भी काम, मिले सफलता हर कदम, निश्चित है परिणाम। जिज्ञासा का उदय ही, ज्ञान प्राप्ति का स्रोत, इसके बिन जो भ...
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दोहे
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बाहर के सौंदर्य को , जानो बिल्कुल व्यर्थ, जो अंतर्सौंदर्य है, उसका ही कुछ अर्थ। समय नष्ट मत कीजिए, गुण शंसा निकृष्ट, जीवन में अपनाइए, ...
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दोहे : अवसर का उपयोग
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आशा ऐसी वस्तु है, मिलती सबके पास, पास न हो कुछ भी मगर, हरदम रहती आस। आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में हैं व्यर्थ, एक वर्ष उद्यम भरा, महती इ...
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होनहार बिरवान के होत चीकने पात
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कवि वृंद ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात‘ और ‘तेते पांव पसारिए, जेते लंबी सौर‘ जैसी लोकोक्तियों के जनक प्रसिद्ध जनकवि वृंद का जन्म सन् ...
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दोहे
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समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर, मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर। मुँह पर ढकना दीजिए, वक्ता होए शांत, मन के मुँह को ढाँकना, कारज ...
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