शाश्वत शिल्प
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नवगीत
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कुछ दाने , कुछ मिट्टी किंचित सावन शेष रहे । सूरज अवसादित हो बैठा ऋतुओं में अनबन , नदिया पर्वत सागर रूठे पवनों में जकड़न , जो ह...
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कृष्ण विवर
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कुछ भी नहीं था पर शून्य भी नहीं था चीख रहे उद्गाता । जगती का रंगमंच उर्जा का है प्रपंच, अकुलाए-से लगते आज महाभूत पंच, दिक् ने ज्यों काल से ...
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सर्पिल नीहारिका
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ठिठके-से तारों की ऊँघती लड़ी, पथराई लगती है सृष्टि की घड़ी। होनी के हाथों में जकड़न-सी आई सूरज की...
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आभास
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लगता है सत्य कभी अथवा आभास, तिनके-से जीवन पर मन भर विश्वास। स्वप्नों की हरियाली जीवन पाथेय बनी, जग जगमग कर देती आशा की एक कनी। डाल-डाल उम्र...
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नवगीत
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शब्दों से बिंधे घाव उम्र भर छले, आस-श्वास पीर-धीर मिल रहे गले। सुधियों के दर्पण में अलसाये-से साये, शुष्क हुए अधरों ने मूक छंद फिर गाए, हृ...
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ज्ञान हो गया फकीर
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नैतिकता कुंद हुई न्याय हुए भोथरे, घूम रहे जीवन के पहिए रामासरे। भ्रष्टों के हाथों में राजयोग की लकीर, बुद्धि भीख माँग रही ज्ञान हो गया फकीर...
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नवगीत
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पल-पल छिन-छिन बीत रहा है, जीवन से कुछ रीत रहा है। सहमे-सहमे से सपने हैं, आशा के अपरूप, ...
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झिलमिल झिलमिल झिलमिल
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दीपों से आलोकित डगर-डगर, द्वार-द्वार। पुलकित प्रकाश-पर्व, तम का विनष्ट गर्व, यत्र-तत्र छूट रहे जुग-जुगनू के अनार। नव तारों के सं...
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नवगीत
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आश्विन के अंबर में रंगों की टोली, सूरज की किरणों ने पूर दी रंगोली। नेह भला अपनों का, मीत बना सपनों का, संध्या की आंखों में चमकती ...
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नवगीत
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अम्बर के नैना भर आए नीर झरे रह-रह के। प्रात स्नान कर दिनकर निकला, छुपा क्षणिक आनन को दिखला, संध्या के आंचल में लाली वीर बहूटी दहक...
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नवगीत
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पोखर को सोख रही जेठ की दुपहरी, मरुथल की मृगतृष्णा सड़कों पर पसरी। धू-धू कर धधक रहे किरणों के शोले, उग आए धरती के पांव पर फफोले। ...
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नवगीत
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पंछी के कोटर में सपनों के जाले। चुगती है संध्या भी नेह के निवाले। गगन तिमिर निरख रहा तारों का क्रंदन, रजनी के भाल, चंद्र लेप ग...
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