संत किसन दास

राजस्थान के प्रमुख संतों में से एक थे- संत किसन दास। इनका जन्म वि.सं. 1746, माघ शुक्ल 5 को नागौर जनपद के  टांकला नामक स्थान में हुआ। इनके पिता का नाम दासाराम तथा माता का नाम महीदेवी था। ये मेघवंशी थे। वि.सं. 1773, वैशाख शुक्ल 11 को इन्होंने संत दरिया साहब से दीक्षा ग्रहण की।
 
संत किसनदास रचित पदों की संख्या लगभग 4000 है जो साखी, चौपाई, कवित्त, चंद्रायण, कुंडलियां,आदि छंदों में लिखी गई हैं। इनके प्रमुख शिष्यों की संख्या 21 थी जिनमें से 11 ने साहित्य रचना भी की।
 
वि.सं. 1835, आषाढ़ शुक्ल 7 को टांकला में इन्होंने देहत्याग किया।
 
प्रस्तुत है, संत किसनदास रचित कुछ साखियां-

बाणी कर कहणी कही, भगति पिछाणी नाहिं,
किसना गुरु बिन ले चला, स्वारथ नरकां माहिं।

किसना जग फूल्यो फिरै, झूठा सुख की आस,
ऐसो जग में जीवणे, पाणी माहिं पतास।

बेग बुढ़ापो आवसी, सुध-बुध जासी छूट,
किसनदास काया नगर, जम लै जासी लूट।

दिवस गमायो भटकता, रात गमायो सोय,
किसनदास इस जीव को, भलो कहां से होय।

कुसंग कदै ना कीजिए, संत कहत है टेर,
जैसे संगत काग की, उड़ती मरी बटेर।

दया धरम संतोस सत, सील सबूरी सार,
किसन दास या दास गति, सहजां मोख दुवार।

उज्जल चित उज्जल दसा, मुख का अमृत बैण,
किसनदास वै नित मिलौ, रामसनेही सैण।

दुख का हो संहार




उद्यम-साहस-धीरता, बुद्धि-शक्ति-पुरुषार्थ,
ये षट्गुण व्याख्या करें, मानव के निहितार्थ।

जब स्वभाव से भ्रष्ट हो, मनुज करे व्यवहार,
उसे अमंगल ही मिले, जीवन में सौ बार।

जो अपने को मान ले, ज्ञानी सबसे श्रेष्ठ,
प्रायः कहलाता वही, मूर्खों में भी ज्येष्ठ।

विनम्रता के बीज से, नेहांकुर उत्पन्न,
सद्गुण शाखा फैलती, प्रेम-पुष्प संपन्न।

वाणी पर संयम सही, मन पर हो अधिकार,
जीवन में सुख-शांति हो, दुख का हो संहार।

                                                                            -महेन्द्र वर्मा