सुरभित मंद समीर ले
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आया है मधुमास।
पुष्प रँगीले हो गए
किसलय करें किलोल,
माघ करे जादूगरी
अपनी गठरी खोल।
गंध पचीसों तिर रहे
पवन हुए उनचास ।
अमराई में कूकती
कोयल मीठे बैन,
बासंती-से हो गए
क्यों संध्या के नैन।
टेसू के संग झूमता
सरसों का उल्लास ।
पुलकित पुष्पित शोभिता
धरती गाती गीत,
पात पीत क्यों हो गए
है कैसी ये रीत।
नृत्य तितलियाँ कर रहीं
भौंरे करते रास ।
-महेन्द्र वर्मा