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मन के नयन



मन के नयन खुले हैं जब तक,
सीखोगे तुम जीना तब तक ।

दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।

शोर नहीं बस अनहद से ही,
सदा पहुँच जाएगी रब तक।

दिल दरिया तो छलकेगा ही,
तट भावों को रोके कब तक।

जान नहीं पाया हूँ  कुछ भी,
जान यही पाया हूँ अब तक।

-महेन्द्र वर्मा