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संत कबीर


संत कबीर की रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वे अपने समय में थीं। उनकी कालजयी रचनाएं आज भी मानव जाति के लिए उपयोगी और अनुकरणीय हैं। प्रस्तुत है संत कबीर के कुछ दोहे -

साधु संतोषी सर्वदा, निर्मल जिनके बैन।
तिनके दरसन परसतें, जिय उपजे सुख चैन ।।

शीलवंत सबसों बड़ा, सब रतनों की खानि।
तीन लोक की संपदा, रही शील में आनि।।

ज्ञानी ध्यानी संयमी, दाता सूर अनेक।
जपिया तपिया बहुत है, शीलवंत कोइ एक।।

साधू मेरे सब बडे़, अपनी अपनी ठौर।
शब्द विवेकी पारखी, वे माथे के मौर।।

दीन गरीबी बंदगी, सब सों आदर भाव।
कहै कबीर तेही बड़ा, जामे बड़ा सुभाव।।

मूरख को समुझावता, ज्ञान गांठि का जाय।
कोयला होय न उजला, सौ मन साबुन लाय।।

संगति सो सुख उपजे, कुसंगति सो दुख जोय।
कह कबीर तहं जाइए, साधु संग जंह होय।।

आरम्भ

अपने इस ब्लाग पर मैं आरम्भ में हिंदी साहित्य के कुछ प्राचीन महाकवियों की रचनाओं को पोस्ट करूंगा। यदा कदा मैं अपनी रचनाओं को भी सम्मिलित करूंगा। आज प्रस्तुत है संत कवि कबीर की एक रचना-

तलफै बिन बालम मोर जिया।
दिन नहिं चैन रात नहिं निंदिया, तलफ तलफ के भोर किया।
तन-मन मोर रहट अस डोले, सून सेज पर जनम छिया।
नैन चकित भए पंथ न सूझै, सोइ बेदरदी सुध न लिया।
कहत कबीर सुनो भइ साधो, हरी पीर दुख जोर किया।