जो भी होगा अच्छा होगा,
फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा ।
भले राह में धूप तपेगी,
मंज़िल पर तो साया होगा ।
दिन को ठोकर खाने वाले,
तेरा सूरज काला होगा ।
पाँव सफ़र मंज़िल सब ही हैं,
क़दम-दर-क़दम चलना होगा ।
कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे घर आईना होगा ।
-महेन्द्र वर्मा
मेरा कहना था कुछ और,
उसने समझा था कुछ और ।
धुँधला-सा है शाम का सफ़र,
सुबह उजाला था कुछ और ।
गाँव जला तो बरगद रोया,
उसका दुखड़ा था कुछ और ।
अजीब नीयत धूप की हुई,
साथ न साया, था कुछ और ।
जीवन-पोथी में लिखने को,
शेष रह गया था कुछ और ।
-महेन्द्र वर्मा