उतना ही सबको मिलना है,
जिसके हिस्से में जितना है।
क्यूं ईमान सजा कर रक्खा,
उसको तो यूं ही लुटना है।
ढोते रहें सलीबें अपनी,
जिनको सूली पर चढ़ना है।
मुड़ कर नहीं देखता कोई,
व्यर्थ किसी से कुछ कहना है।
जंग आज की जीत चुका हूं,
कल जीवन से फिर लड़ना है।
सूरज हूं जलता रहता हूं,
दुनिया को ज़िंदा रखना है।
बोल सभी लेते हैं लेकिन,
किसने सीखा चुप रहना है।
-महेन्द्र वर्मा