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शीत - सात छवियाँ



धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव,
ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव ।

रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद,
पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर बूँद ।

सूरज हमने क्या किया, क्यों करता परिहास,
धुआँ-धुआँ सी जि़ंदगी, धुंध-धुंध विश्वास ।

मानसून की मृत्यु से, पर्वत है हैरान,
दुखी घाटियाँ ओढ़तीं, श्वेत वसन परिधान ।

कितनी निठुरा हो गई, आज पूस की रात,
नींद राह तकती रही, सपनों की बारात ।

उम्र नहीं अब देखती, छोटी चादर माप,
मन को ऊर्जा दे रहा, जीवन का संताप ।

बुझी अँगीठी देखती, मुखिया बेपरवाह,
परिजन हुए विमूढ़-से, वाह करें या आह ।
                                                                  -महेन्द्र वर्मा