देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन
मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन।
निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल
इतराता सा वह चला, लेकर रंग गुलाल।
कलियों के संकोच से, फागुन हुआ अधीर
वन-उपवन के भाल पर, मलता गया अबीर।
फागुन आता देखकर, उपवन हुआ निहाल,
अपने तन पर लेपता, केसर और गुलाल।
तन हो गया पलाश-सा, मन महुए का फूल,
फिर फगवा की धूम है, फिर रंगों की धूल।
ढोल मंजीरे बज रहे, उड़े अबीर गुलाल,
रंगों ने ऊधम किया, बहकी सबकी चाल।
कोयल कूके कान्हड़ा, भँवरे भैरव राग,
गली-गली में गूँजता, एक ताल में फाग।
रंगों की बारिश हुई, आँधी चली गुलाल,
मन भर होली खेलिए, मन न रहे मलाल।
उजली-उजली रात में, किसने गाया फाग,
चाँद छुपाता फिर रहा, अपने तन के दाग।
टेसू पर उसने किया, बंकिम दृष्टि निपात
लाल लाज से हो गया, वसन हीन था गात।
अमराई की छांव में, फागुन छेड़े गीत
बेचारे बौरा गए, गात हो गए पीत।
फागुन और बसंत मिल, करे हास-परिहास
उनको हंसता देखकर, पतझर हुआ उदास।
पूनम फागुन से मिली, बोली नेह लुटाय
और माह फीके लगे, तेरा रंग सुहाय।
नेह-आस-विश्वास से, हुए कलुष सब दूर,
भीगे तन-मन-आत्मा, होली का दस्तूर।
आतंकी फागुन हुआ, मौसम था मुस्तैद
आनन-फानन दे दिया, एक वर्ष की क़ैद।
शुभकामनाएं
- महेन्द्र वर्मा