Showing posts with label मंजि़ल. Show all posts
Showing posts with label मंजि़ल. Show all posts
मौसम की मक्कारी
हरियाली ने कहा देख लो मेरी यारी कुछ दिन और,
सहना होगा फिर उस मौसम की मक्कारी कुछ दिन और ।
बाँस थामकर नाच रहा था छोटा बच्चा रस्सी पर,
दिखलाएगा वही तमाशा वही मदारी कुछ दिन और ।
हर मंजि़ल का सीधा-सादा रस्ता नहीं हुआ करता,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी से कर लो यारी कुछ दिन और ।
अंधी श्रद्धा के बलबूते टिका नहीं व्यापार कभी,
बने रहो भगवान कपट से या अवतारी कुछ दिन और ।
ग़म के पौधों पर यादों की फलियाँ भी लग जाएंगी,
अहसासों से सींच सको ’गर उनकी क्यारी कुछ दिन और ।
सुकूँ नहीं मिलता है दिल को कीर्तन और अज़ानों से,
हमें सुनाओ बच्चों की खिलती किलकारी कुछ दिन और ।
तस्वीरों पर फूल चढ़ा कर गुन गाएंगे मेरे यार,
कर लो जितनी चाहे कर लो चुगली-चारी कुछ दिन और ।
-महेन्द्र वर्मा
सहना होगा फिर उस मौसम की मक्कारी कुछ दिन और ।
बाँस थामकर नाच रहा था छोटा बच्चा रस्सी पर,
दिखलाएगा वही तमाशा वही मदारी कुछ दिन और ।
हर मंजि़ल का सीधा-सादा रस्ता नहीं हुआ करता,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी से कर लो यारी कुछ दिन और ।
अंधी श्रद्धा के बलबूते टिका नहीं व्यापार कभी,
बने रहो भगवान कपट से या अवतारी कुछ दिन और ।
ग़म के पौधों पर यादों की फलियाँ भी लग जाएंगी,
अहसासों से सींच सको ’गर उनकी क्यारी कुछ दिन और ।
सुकूँ नहीं मिलता है दिल को कीर्तन और अज़ानों से,
हमें सुनाओ बच्चों की खिलती किलकारी कुछ दिन और ।
तस्वीरों पर फूल चढ़ा कर गुन गाएंगे मेरे यार,
कर लो जितनी चाहे कर लो चुगली-चारी कुछ दिन और ।
-महेन्द्र वर्मा
Subscribe to:
Posts (Atom)