संत रविदास या रैदास मध्ययुग के महान संतकवि थे। इनका जन्म काशी के निकट मंडूर नामक स्थान में विक्रम संवत 1456 को हुआ था। उन्होंने विधिवत कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की किंतु अपने अनुभव, भ्रमण और सत्संग से ही सब कुछ सीखा। संत रविदास ने अपने जीवन काल में ही सिद्धि प्राप्त कर धर्मोपदेशक के रूप में यश अर्जित कर लिया था। गुरुग्रंथ साहिब में उनके 40 पद उसी मौलिक स्वरूप में संग्रहित हैं। इनका देहावसान विक्रम संवत 1584 को हुआ। प्रस्तुत है इनका एक प्रसिद्ध पद -
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जा की जोत बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहि मिलत सोहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा।