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जो भी होगा अच्छा होगा



जो  भी   होगा  अच्छा   होगा,
फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा ।

भले  राह  में  धूप  तपेगी,
मंज़िल पर तो साया होगा ।

दिन को ठोकर खाने वाले,
तेरा  सूरज  काला  होगा ।

पाँव  सफ़र  मंज़िल सब ही हैं,
क़दम-दर-क़दम चलना होगा ।

कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे   घर   आईना   होगा ।
 

-महेन्द्र वर्मा

कुछ और

मेरा कहना था कुछ और,
उसने समझा था कुछ और ।

धुँधला-सा है शाम का  सफ़र,
सुबह उजाला था कुछ और ।

गाँव जला तो बरगद रोया,
उसका दुखड़ा था कुछ और ।

अजीब नीयत धूप की हुई,
साथ न साया, था कुछ और ।

जीवन-पोथी में लिखने को,
शेष रह गया था कुछ और ।

 

-महेन्द्र वर्मा

बरगद माँगे छाँव




सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग,
बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग।

भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव,
पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव।
 

सूरज बोला  सुन जरा, धरती मेरी बात,
मैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।

सूरज है मुखिया भला, वही कमाता रोज,
जल-थल-नभचर पालता, देता उनको ओज।

पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।

धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

                                                                               

  -महेन्द्र वर्मा