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उम्र का समंदर

दिन ढला तो साँझ का उजला सितारा मिल गया,
रात की अब फ़िक्र किसको जब दियारा मिल गया ।

ज़िंदगी   की  डायरी   में    बस   लकीरें  थीं  मगर,
कुछ लिखा था जिस सफ़्हे पर वो दुबारा मिल गया ।

तेज़ लहरों ने गिराया फिर उठाया और तब,
उम्र के गहरे समंदर का किनारा मिल गया ।

वो  जिसे  बाहर  हमेशा  ढूँढता  फिरता  रहा,
बंद आखों से हृदय में जब निहारा मिल गया ।

वक़्त ने  की  मेह्रबानी  तोहफ़ा  उसने  दिया,
फिर वही अनबूझ प्रश्नों का पिटारा मिल गया ।


-महेन्द्र वर्मा