दर रहे या ना रहे छाजन रहे,
फूल हों ख़ुशबू रहे आँगन रहे ।
फ़िक्र ग़म की क्यों, ख़ुशी से यूँ अगर,
आँसुओं से भीगता दामन रहे ।
झाँक लो भीतर कहीं ऐसा न हो,
आप ही ख़ुद आप का दुश्मन रहे ।
ज़िंदगी में लुत्फ़ आता है तभी,
जब ज़रा-सी बेवजह उलझन रहे ।
कल सुबह सूरज उगे तो ये दिखे,।
बीज मिट्टी और कुछ सावन रहे ।
-महेन्द्र वर्मा