1.
कितनी धुँधली-सी
हो गई हैं
छवियाँ
या
आँखों में
भर आया है कुछ
शायद
अतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !
2.
विवेक ने कहा-
हाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !
3.
दिन गुजर गया
विलीन हो गया
दूर क्षितिज में
एक बिंदु-सा
लेकिन
अपने पैरों में
बँधे राकेट के धुएँ से
सफेद बादलों की लकीर
उकेर गया
मन के आकाश में !
-महेन्द्र वर्मा