देवता

आदमी को आदमी-सा फिर बना दे देवता,
काल का पहिया ज़रा उल्टा घुमा दे देवता।

लोग सदियों से तुम्हारे नाम पर हैं लड़ रहे,
अक़्ल के दो दाँत उनके फिर उगा दे देवता।

हर जगह मौज़ूद पर सुनते कहाँ हो इसलिए,
लिख रखी है एक अर्ज़ी कुछ पता दे देवता।

शौक से तुमने गढ़े हैं आदमी जिस ख़ाक से,
और थोड़ी-सी नमी उसमें मिला दे देवता।

लोग  तुमसे  भेंट  करवाने  का  धंधा  कर  रहे,
दाम उनको बोल कर कुछ कम करा दे देवता।

धूप-धरती-जल-हवा-आकाश के अनुपात को,
कुछ बदल कर देख थोड़ा फ़र्क़ ला दे देवता।

आजकल दुनिया की हालत देख तुम ग़मगीन हो,
कुछ  ग़लत  मैंने  कहा  हो  तो  सज़ा  दे  देवता।

                                                                              -महेन्द्र वर्मा