क्लोन

वह
अनादि है
अनंत है
उसे
न तो
उत्पन्न किया जा सकता है
और न ही नष्ट

उसका
नहीं कोई आकार
रूप नहीं, गुण नहीं
वह
पदार्थ भी नहीं
किंतु  विद्यमान है यत्र-तत्र-सर्वत्र

कण-कण में है वह
व्यक्त कर लेता है

स्वयं को अनेक रूपों में भी


कुछ विद्वान
इसे ऊर्जा कहते हैं
किंतु
मुझे तो यह
‘क्लोन’  लगता है

छांदोग्य उपनिषद
में वर्णित ब्रह्म का।


                                               -महेन्द्र वर्मा