छंदों के तेवर बिगड़े हैं,
गीत-ग़ज़ल में भी झगड़े हैं।
राजनीति हो या मज़हब हो,
झूठ के झंडे लिए खड़े हैं ।
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
दीयों की औकात न पूछो
किसी सूर्य के ये टुकड़े हैं ।
मौन-मुखर-पाखंड-सत्यता,
मेरे गीतों के मुखड़े हैं । -महेन्द्र वर्मा
गीत-ग़ज़ल में भी झगड़े हैं।
राजनीति हो या मज़हब हो,
झूठ के झंडे लिए खड़े हैं ।
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
दीयों की औकात न पूछो
किसी सूर्य के ये टुकड़े हैं ।
मौन-मुखर-पाखंड-सत्यता,
मेरे गीतों के मुखड़े हैं । -महेन्द्र वर्मा