दोहे - सारे नाते नेह के



नाते इस संसार में, बनते एकाएक,
सारे नाते नेह के, नेह बिना नहिं नेक।


मन की गति कितनी अजब, कितनी है दुर्भेद,
तुरत बदलता रंग है, कोउ न जाने भेद।


मानव जीवन क्षणिक है, पल भर उसकी आयु,
लेकिन उसकी कामना, होती है दीर्घायु।


सुख के साथी बहुत हैं, होता यही प्रतीत,
दुख में रोए साथ जो, वही हमारा मीत।


क्रोधी करता है पुनः, अपने ऊपर क्रोध,
जब यथार्थ के ज्ञान का, हो जाता है बोध।


वह मनुष्य सबसे अधिक, है दरिद्र अरु दीन,
जो केवल धन ही रखे, विद्या सद्गुण हीन।


जो चाहें मिलता नहीं, मिलता अनानुकूल,
सोच सोच सब  ढो रहे, मन भर दुख सा शूल।

                                                                   -महेंद्र वर्मा

37 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

Nice post .

आपकी सुविधा के लिए सही लिंक यह है -

ब्लॉग जगत का नायक बना देती है ‘क्रिएट ए विलेन तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (29)

Rakesh Kumar said...

आपकी सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति से दिल गदगद हो गया.
मन ही मीत है और मन ही दुश्मन.
आपके पावन हृदय को प्रणाम.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
हो सके तो 'भक्ति व शिवलिंग' पर अपने
सुविचार प्रस्तुत कीजियेगा.

आभार.

ZEAL said...

सुख के साथी बहुत हैं, होता यही प्रतीत,
दुख में रोए साथ जो, वही हमारा मीत।

All the couplets are so realistic. Everything is so short-lived yet we desire for it. Probably this is how we human beings are designed and destined to think.

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केवल राम said...

क्रोधी करता है पुनः, अपने ऊपर क्रोध,
जब यथार्थ के ज्ञान का, हो जाता है बोध।

क्रोध का अंत पश्चाताप है ...!

Anupama Tripathi said...

जो चाहें मिलता नहीं, मिलता अनानुकूल,
सोच सोच सब ढो रहे, मन भर दुख सा शूल।
bahut sunder aur sateek dohe hain....
badhai.

virendra sharma said...

जो चाहें मिलता नहीं, मिलता अनानुकूल,
सोच सोच सब ढो रहे, मन भर दुख सा शूल।वाह भाई साहब यही तो ज़िन्दगी का यथार्थ है जीवन एक पैकेज हैबेहद खूबसूरत नीति परक दोहे हमारे वक्त की ज़रुरत हैं . यहाँ कडवा मीठा सब है ,ऐसा नहीं है ,कडवा कडवा थू ,मीठा मीठा गप . ram ram bhai

शनिवार, २० अगस्त २०११
कुर्सी के लिए किसी की भी बली ले सकती है सरकार ....
स्टेंडिंग कमेटी में चारा खोर लालू और संसद में पैसा बंटवाने के आरोपी गुब्बारे नुमा चेहरे वाले अमर सिंह को लाकर सरकार ने अपनी मनसा साफ़ कर दी है ,सरकार जन लोकपाल बिल नहीं लायेगी .छल बल से बन्दूक इन दो मूढ़ -धन्य लोगों के कंधे पर रखकर गोली चलायेगी .सेंकडों हज़ारों लोगों की बलि ले सकती है यह सरकार मन मोहनिया ,सोनियावी ,अपनी कुर्सी बचाने की खातिर ,अन्ना मारे जायेंगे सब ।
क्योंकि इन दिनों -
"राष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,महाराष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,
मनमोहन दिल हाथ पे रख्खो ,आपकी साँसे अन्नाजी .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....

http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्रोधी करता है पुनः, अपने ऊपर क्रोध,
जब यथार्थ के ज्ञान का, हो जाता है बोध।

यही होता है..... गहन अभिव्यक्ति

मनोज कुमार said...

सुख के साथी बहुत हैं, होता यही प्रतीत,
दुख में रोए साथ जो, वही हमारा मीत।

मिलता नही इस जग में ऐसा कोई मीत।

संतोष त्रिवेदी said...
This comment has been removed by the author.
संतोष त्रिवेदी said...

samajik aur naitik updesh deti rachna !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा साहब,
सुन्दर दोहे आपके, प्रेरक सभी प्रसंग,
इस तीरथ पे आये के, होता है सत्संग!
प्रणाम!

vandana gupta said...

वाह सटीक सार्थक और सामयिक दोहे…………अति उत्तम

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

“शास्वत की अभिव्यक्ति, स्वर्णसम उपदेश
आपके इन दोहों में, जीवन का सन्देश “
सादर बधाई...

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई महेंद्र जी बहुत ही सुन्दर दोहे बधाई

दिगम्बर नासवा said...

मानव जीवन क्षणिक है, पल भर उसकी आयु,
लेकिन उसकी कामना, होती है दीर्घायु।

मानव कभी इस कामना से मुक्ति नहीं पा सकेगा ... बहुत ही सार्थक हैं सभी दोहे ...

अरुण चन्द्र रॉय said...

सटीक सार्थक और सामयिक दोहे…

Bharat Bhushan said...

क्रोधी करता है पुनः, अपने ऊपर क्रोध,
जब यथार्थ के ज्ञान का, हो जाता है बोध।

जो चाहें मिलता नहीं, मिलता अनानुकूल,
सोच सोच सब ढो रहे, मन भर दुख सा शूल।

बहुत प्रेरणादायक दोहे हैं. लगता है आपके माध्यम से इस दोहा छंद का पुनर्जन्म हो रहा है.

Shalini kaushik said...

बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.आपको कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें

रेखा said...

आपकी रचना हमेशा ही सुन्दर और उपयोगी सीखों से भरी हुई होती ...ऐसे ही लिखते रहें ताकि हम जैसे लोग इनसे सबक लेकर आगे बढ़ सकें ...आभार

Kunwar Kusumesh said...

यथार्थ का बोध कराते सुन्दर दोहे.
सभी दोहे एक से बढ़कर एक.

Satish Saxena said...

बढ़िया दोहे , काश लोग इन्हें समझें तो आनंद आये ! शुभकामनायें आपको !

Shikha Kaushik said...

bahut achchhe lage aapke dohe.aapko janmashtmi kee hardik shubhkamnayen.
BHARTIY NARI

Apanatva said...

मानव जीवन क्षणिक है, पल भर उसकी आयु,
लेकिन उसकी कामना, होती है दीर्घायु।


सुख के साथी बहुत हैं, होता यही प्रतीत,
दुख में रोए साथ जो, वही हमारा मीत।

saryhak aur sandesh deta har doha amuly sougat hai aapke lekhan v vicharo kee hum logo ke liye .

Aabhar.

Beqrar said...

बहूत ही सारगर्भीत और नितिपरक दोहे..इस बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद

Amrita Tanmay said...

सुन्दर शिल्प में शाश्वत से दोहे . मनन करने योग्य. बहुत अच्छा लगा.शुभकामना

Maheshwari kaneri said...

गहन अभिव्यक्ति लिए सारगर्भीत सार्थक दोहे..

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार दोहे लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

ASHOK BAJAJ said...

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

Dr (Miss) Sharad Singh said...

शिल्प, भाव, शब्द चित्रण और उत्कृष्ट साहित्यिक रचना है ...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर एवं सार्थक दोहे।

------
लो जी, मैं तो डॉक्‍टर बन गया..
क्‍या साहित्‍यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?

एक स्वतन्त्र नागरिक said...

अच्छा लिखा है. सचिन को भारत रत्न क्यों? कृपया पढ़े और अपने विचार अवश्य व्यक्त करे.
http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com

रचना दीक्षित said...

बेहतरीन दोहे, एक नई सोच,सार्थक और सामयिक दोहे बधाई
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

हमेशा की तरह यही कहूंगा - महेंद्र जी ! दोहों की रचना में आपका जवाब नहीं.एक से बढ़ कर एक.

Unknown said...

सुख के साथी बहुत हैं, होता यही प्रतीत,
दुख में रोए साथ जो, वही हमारा मीत।
अत्युत्तम रचना ..दोहों के माध्यम से अति गहन अभिव्यक्ति
अपार शुभकामनायें

संजय भास्‍कर said...

महेंद्र जी
बहुत सुन्दर दोहे
सभी दोहे एक से बढ़कर एक.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

एक से बढ़ कर एक दोहे। भविष्य की थाती बनने योग्य दोहे। यह दोहा दिल के काफ़ी क़रीब लगा

क्रोधी करता है पुनः, अपने ऊपर क्रोध,
जब यथार्थ के ज्ञान का, हो जाता है बोध।

Anonymous said...

अति उत्तम