गीतिका : दिन



सूरज का हरकारा दिन,
फिरता मारा-मारा दिन।


कहा सुबह ने हँस लो थोड़ा, 
फिर रोना है सारा दिन।


जिनकी किस्मत में अँधियारा,
तब क्या बने सहारा दिन।


इतराता आया पर लौटा, 
थका-थका सा हारा दिन।


रात-रात भर गायब रहता,
जाने कहाँ कुँवारा दिन।


मेरे ग़म को वह क्या समझे,
तारों का हत्यारा दिन।

                                                -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

Bharat Bhushan said...

एकदम नए मूड की ग़ज़ल है. इन पंक्तियों में जीवन संघर्ष बहुत अच्छा बन आया है-

इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन।

बहुत खूब महेंद्र जी.

अनुपमा पाठक said...

मेरे ग़म को वह क्या समझे,
तारों का हत्यारा दिन।
बहुत खूब!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन।

बहुत ही सुंदर.....

shashi purwar said...

जिनकी किस्मत में अँधियारा,
तब क्या बने सहारा दिन।


इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन।............तारों का हत्यारा दिन।
बहुत खूब!

Rahul Singh said...

जो चाहे कल की रो-धो ले,
हमको आज का प्‍यारा दिन.

S.N SHUKLA said...

जिनकी किस्मत में अँधियारा,
तब क्या बने सहारा दिन।


इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन।


सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.

अजित गुप्ता का कोना said...

आज तो दिन को ही लपेट लिया? लोग तो रातों को लपेटते हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..अजीत जी की टिप्पणी पढ़ कर हंसी आ गयी :)

vandana gupta said...

वाह कितने खूबसूरत भाव संजोये हैं।

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत सुन्दर गीतिका... वाकई दिन तारों का हत्यारा होता है... नए विम्ब हैं कविता में..

Pallavi saxena said...

रात-रात भर गायब रेहता
जाने कहाँ वो कूवानरा दिन
मेरे ग़म को वो क्या समझे
तारों का हत्यारा दिन....
वाह बहुत खूब लिखा है आपने भूषण जी की बात से सहमत हूँ एक अलग ही मूड की गजल लिखी है आपने ....
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

Always Unlucky said...

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Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

जीवन और जगत said...

मेरे गम को वह क्‍या समझे, तारों का हत्‍यारा दिन। बढि़या शेर।

रेखा said...

जिनकी किस्मत में अँधियारा,
तब क्या बने सहारा दिन।

एक से बढ़कर एक शेर ...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन।
वाह वाह आदरणीय महेंद्र सर... आनंद आगया...
सादर बधाई...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा साहब,
आनंद आता है, आपकी हर पोस्ट में..

मनोज कुमार said...

रात-रात भर गायब रहता,
जाने कहाँ कुँवारा दिन।
कितना सुन्दर बिम्ब प्रयोग है इस ग़ज़ल / गीतिका में।

कुमार संतोष said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

Vandana Ramasingh said...

इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन।


रात-रात भर गायब रहता,
जाने कहाँ कुँवारा दिन।

Vandana Ramasingh said...

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

Urmi said...

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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virendra sharma said...

क्या खूब मानवीकरण किया है दिन का गीतिका में ,हरकारा भी कुंवारा भी ,हत्यारा भी सारे आधुनिक सरोकार ज़िन्दगी के दिन के सिर कर दिए .खूब निर्वाह किया है आज की रवानी का जिंदगानी का .

ZEAL said...

दिन की बेचारगी को पहली बार समझा...अद्भुत अभिव्यक्ति..

daanish said...

दिन पर केन्द्रित गीतिका
बहुत प्रभाव शाली बन पड़ी है
बधाई .

Amrita Tanmay said...

बढ़िया लिखा है .लाजवाब .

Dr.NISHA MAHARANA said...

मेरे ग़म को वह क्या समझे,
तारों का हत्यारा दिन।.लाजवाब.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

महेंद्र जी, बहुत देर से हासिलेगज़ल शेर चुनने की कोशिश कर रहा हूँ मगर हर शेर दूसरे पर सवा शेर है,पूरी की पूरी गज़ल ही मन की गहराई में उतर गई है.सारी निगाहें दिन को ही काम करती हैं मगर दिन पर गहरी निगाह डाली गई हो ,ऐसा पहली बार ही देखा है.बधाई.

Kailash Sharma said...

रात-रात भर गायब रहता,
जाने कहाँ कुँवारा दिन।

.....बहुत खूब ! हर पंक्ति लाज़वाब..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

नए बिम्ब को समेटती सुंदर रचना,...
नये पोस्ट -प्रतिस्पर्धा-में आपका इंतजार है

Rakesh Kumar said...

मेरे ग़म को वह क्या समझे,
तारों का हत्यारा दिन।

उफ़! तारों का हत्यारा दिन.
कहते हैं तारे छिप जाते हैं दिन में,
फिर प्रकट हो जाते हैं रात में.

आपकी रचना भाव और शब्दों के
सुन्दर संयोजन से उत्कृष्ट बन गई है.

आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,महेंद्र जी.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बहुत सुन्दर गीतिका ..वर्माजी !

दिगम्बर नासवा said...

इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन। ...

वाह ... बुत ही जबरदस्त भाव लिए है ये शेर ... कमाल की रचना ...

Naveen Mani Tripathi said...

मेरे ग़म को वह क्या समझे,
तारों का हत्यारा दिन।

Vah ...bahut khoob...abhar.

panditramdial said...

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