सूरज: सात दोहे



सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग,
बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग।

भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव,
पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव।

सूरज बोला  सुन जरा, धरती मेरी बात,
मैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।

सूरज है मुखिया भला, वही कमाता रोज,
जल-थल-नभचर पालता, देता उनको ओज।

पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।

धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

                                                                                 -महेन्द्र वर्मा

34 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे................

सूर्य की महत्ता जानते हैं मगर फिर भी लगता है क्यूँ तपाते हो सूरज इतना??????

सादर.

रविकर said...

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

बढ़िया दोहे -
बधाई स्वीकारें ||

vandana gupta said...

पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।
बेहद उम्दा और सार्थक दोहे

शारदा अरोरा said...

vaah vaah , kamaal ke dohe...

रविकर said...

सूरज बोला प्रेम से, सुन धरती इक बात,
मैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।|

बहुत खूब भाई जी -

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सूरज बोला प्रेम से, सुन धरती मेरी बात,
मैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।

सुंदर भाव पुर्ण सार्थक अभिव्यक्ति ,...बेहतरीन दोहे,....

MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

लोकेन्द्र सिंह said...

सूर्य देव की महिमा अपरम्पार...
शानदार रचना...

ZEAL said...

धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार...

waah ! ati sundar..

.

Anupama Tripathi said...

अर्थपूर्ण कविता और शब्दों का सुंदर चयन ...!!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे...सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

मनोज कुमार said...

पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव।
आजकल ऐसी ही गरमी पड़ रही है। लेकिन आपने सूरज के इस रूप के अलावा उसके प्रकृति के संरक्षण में अन्य रूपों को भी दर्शाया है। वह काफ़ी रोचक लगा।

virendra sharma said...

पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।
Very meaningful couplets highlighting the importance of The Sun which is the primary source of energy on earth .It is the sun which carries photosynthesis and regulates the water cycle.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

जीवनदायी सूर्य के विभिन्न रूपों का वर्णन इन सात दोहों में, मानो सूरज के सात घोड़े!!
अद्भुत, वर्मा साहब!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर दोहे................

Rahul Singh said...

सुंदर सधे दोहे.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं।..बहुत बधाई।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

सभी दोहे सुंदर हैं
अंतिम दोहे ने तो मन मोह लिया

Bharat Bhushan said...

धूप से तपे मौसम में ये काव्याग्नि में तपे सुंदर दोहे. बहुत ही सुंदर.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

वाह !!!! यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग. नायाब दोहे.
अश्व खींचते सूर्य रथ, सुंदर दोहे सात
सदा महेंद्र वर्मा कहें,नई निराली बात.

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर सार्थक सारगर्भित दोहे.....आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।


सभी दोहे बहुत अच्छे ... सुंदर प्रस्तुति

Kailash Sharma said...

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

....बहुत खूब ! बहुत सुंदर और सार्थक दोहे...आभार

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति

कल 16/05/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


...'' मातृ भाषा हमें सबसे प्यारी होती है '' ...

अशोक सलूजा said...

धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।

जीवन का अर्थ ....समझाते दोहे !
बहुत सुंदर !
आभार!

Satish Saxena said...

सच तो है .....
शुभकामनायें आपकों !

ऋता शेखर 'मधु' said...

सूरज से तप तप कर निकले सूरज पर सुंदर भाव...
सभी दोहे सार्थक हैं...

दिगम्बर नासवा said...

भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव,
पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव..

सभी दोने सूरज के ताप कों ऊंचा उठा रहे हैं ... बहुत ही सुन्दर ...

Pallavi saxena said...

जीवन दर्शन कराते सुंदर दोहे....

Sonroopa Vishal said...

सूर्य देवता के प्रकोप से हम सब परेशां हैं ...लेकिन आपके दोहों ने सूर्य के महत्व को भी दोहों में सजा दिया .......बढ़िया

प्रेम सरोवर said...

आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर इन्द्रधनुषी दोहे...
सादर बधाईयाँ सर...

Amrita Tanmay said...

पहली बार में ही दोहों से एक विशेष नेह सा जुड़ जाता है . भाव तो रोक ही लेता है..बहुत ही अच्छा लगता है पढ़ना..

Ramakant Singh said...

पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।

धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

बहुत सुन्दर नहीं खुबसूरत संग्रहनीय

Vandana Ramasingh said...

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

बहुत बढ़िया दोहे