दुख का हो संहार




उद्यम-साहस-धीरता, बुद्धि-शक्ति-पुरुषार्थ,
ये षट्गुण व्याख्या करें, मानव के निहितार्थ।

जब स्वभाव से भ्रष्ट हो, मनुज करे व्यवहार,
उसे अमंगल ही मिले, जीवन में सौ बार।

जो अपने को मान ले, ज्ञानी सबसे श्रेष्ठ,
प्रायः कहलाता वही, मूर्खों में भी ज्येष्ठ।

विनम्रता के बीज से, नेहांकुर उत्पन्न,
सद्गुण शाखा फैलती, प्रेम-पुष्प संपन्न।

वाणी पर संयम सही, मन पर हो अधिकार,
जीवन में सुख-शांति हो, दुख का हो संहार।

                                                                            -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाणी पर संयम सही, मन पर हो अधिकार,
जीवन में सुख-शांति हो, दुख का हो संहार।

बहुत बेहतरीन प्रेरक दोहे ,,,,,,बधाई महेंद्र जी
बहुत दिनों से आप मेरे पोस्ट पर नही आए आइये
आपका स्वागत है,,,,

RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

Bharat Bhushan said...

सभी श्रेष्ठ गुणों को आपके दोहे बता रहे हैं.
उद्यम-साहस-धीरता, बुद्धि-शक्ति-पुरुषार्थ,
ये षट्गुण व्याख्या करें, मानव के निहितार्थ।
बहुत सुंदर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विनम्रता के बीज से, नेहांकुर उत्पन्न,
सद्गुण शाखा फैलती, प्रेम-पुष्प संपन्न।

सभी दोहे बहुत सार्थक हैं ...अच्छी सीख देते हुये ॥

Ramakant Singh said...

वाणी पर संयम सही, मन पर हो अधिकार,
जीवन में सुख-शांति हो, दुख का हो संहार।

महेंद्र भैया जी बहुत खुबसूरत ढंग से कही गई बातें सादर नमन

Ramakant Singh said...

महेंद्र भैया जी बहुत खुबसूरत ढंग से कही गई बातें सादर नमन

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत अच्छी - अच्छी बाते है आपकी रचना में..
सुन्दर सन्देश देती बेहद सुन्दर रचना...
:-)

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही अच्छे दोहे |

Amrita Tanmay said...

आप्तवाणी .. अनुसरण करने योग्य..

रश्मि प्रभा... said...


जो अपने को मान ले, ज्ञानी सबसे श्रेष्ठ,
प्रायः कहलाता वही, मूर्खों में भी ज्येष्ठ।...बिल्कुल

ANULATA RAJ NAIR said...

बढ़िया ...
सार्थक दोहे..

सादर
अनु

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!
आपके इस उत्कृष्ट प्रवृष्टि का लिंक कल दिनांक 10-09-2012 के सोमवारीय चर्चामंच-998 पर भी है। सादर सूचनार्थ

Vandana Ramasingh said...

कई पोस्ट एक साथ पढ़ीं ....ऐसा लगा बेहतरीन पुस्तक पढ़ी ...आभार

Kunwar Kusumesh said...

जब स्वभाव से भ्रष्ट हो, मनुज करे व्यवहार,
उसे अमंगल ही मिले, जीवन में सौ बार।

सुन्दर सन्देश.बहुत अच्छे दोहे .

डॉ. मोनिका शर्मा said...


विनम्रता के बीज से, नेहांकुर उत्पन्न,
सद्गुण शाखा फैलती, प्रेम-पुष्प संपन्न।

बहुत उम्दा....

दिगम्बर नासवा said...

जब स्वभाव से भ्रष्ट हो, मनुज करे व्यवहार,
उसे अमंगल ही मिले, जीवन में सौ बार..

सार्थक सन्देश देते सभी दोहे ... प्रेरक अती सुन्दर ... मज़ा आ गया जी ...

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे..
आभार महेन्द्र जी..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सार्थक सटीक प्रेरक दोहे,,,,,बधाई महेंद्र जी,,,,

RECENT POST - मेरे सपनो का भारत

Anju (Anu) Chaudhary said...

सार्थक दोहे ...

ZEAL said...


वाणी पर संयम सही, मन पर हो अधिकार,
जीवन में सुख-शांति हो, दुख का हो संहार।

sukhi jeevan ke mantra..

.

कविता रावत said...

विनम्रता के बीज से, नेहांकुर उत्पन्न,
सद्गुण शाखा फैलती, प्रेम-पुष्प संपन्न।
..बेहतरीन प्रेरक दोहे...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

प्रेरक, हमेशा की तरह!!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

उद्यम-साहस-धीरता, बुद्धि-शक्ति-पुरुषार्थ,
ये षट्गुण व्याख्या करें, मानव के निहितार्थ।

हर एक दोहा श्रेष्ठतम.बहुत दिनों बाद आपके दोहे पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ.आभार.......

संजय भास्‍कर said...

....बहुत खुबसूरत ढंग से कही गई बातें महेंद्र जी

Santosh Kumar said...

विनम्रता के बीज से, नेहांकुर उत्पन्न,
सद्गुण शाखा फैलती, प्रेम-पुष्प संपन्न।

बेहद प्रेरक पंक्तियाँ.

virendra sharma said...


जो अपने को मान ले, ज्ञानी सबसे श्रेष्ठ,
प्रायः कहलाता वही, मूर्खों में भी ज्येष्ठ।
जो रिमोट से चल पड़े प्राणि वह कुल श्रेष्ठ ,
अर्थ व्यवस्था खुद के तैं , प्राणि करे वह सर्वश्रेष्ठ .
कुछ दोहे भाई साहब आप से इस रिमोटिया सरकार पर अपेक्षित हैं हमने संकेत भर किया है मात्रा ठीक आप कर लेना दोहे गढ़ लेना अनगढ़ .

.
ram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )

vandana gupta said...

जो अपने को मान ले, ज्ञानी सबसे श्रेष्ठ,
प्रायः कहलाता वही, मूर्खों में भी ज्येष्ठ।

विनम्रता के बीज से, नेहांकुर उत्पन्न,
सद्गुण शाखा फैलती, प्रेम-पुष्प संपन्न।

सार्थक व प्रेरक दोहे।

mark rai said...

वाणी पर संयम सही, मन पर हो अधिकार,
जीवन में सुख-शांति हो, दुख का हो संहार।

...बहुत सुंदर.

kavita verma said...

sundar dohe..

shashi purwar said...

namaskaar mahendra ji
sabhi dohe uttam aur sarthak , aapki post par aana sarthak ho gaya , badhai

Anupama Tripathi said...

जब स्वभाव से भ्रष्ट हो, मनुज करे व्यवहार,
उसे अमंगल ही मिले, जीवन में सौ बार।

bahut sarthak baat ...!!
shubhkamnayen ...!!

संजय @ मो सम कौन... said...

यही है सर्वजन हितकारी बोल| हमेशा की तरह सरल, सारगर्भित और संग्रहणीय|

रंजना said...

विचारमनकों की अद्वितीय माला......

एक से बढ़कर एक मनके...

अतिसुन्दर...

Kailash Sharma said...

सार्थक संदेश देते बहुत सुन्दर दोहे...

Rakesh Kumar said...

आपके सुवचनों से सज्जित इस प्रस्तुति
से वास्तव में दुःख का संहार हो जाएगा.

अनुपम प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार.

समय मिले तो मेरी नवीन पोस्ट पर आईएगा.

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 18/2/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की गयी हैं. आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!