सफेद बादलों की लकीर



1.
 

कितनी धुँधली-सी
हो गई हैं
छवियाँ
या
आँखों में
भर आया है कुछ

शायद
अतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !

2.

विवेक ने कहा-
हाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !

3.

दिन गुजर गया
विलीन हो गया
दूर क्षितिज में
एक बिंदु-सा
लेकिन
अपने पैरों में
बँधे राकेट के धुएँ से
सफेद बादलों की लकीर
उकेर गया
मन के आकाश में !

                                        -महेन्द्र वर्मा


32 comments:

Anonymous said...

शाश्वत सत्य

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

महेंद्र सा.
हमेशा की तरह दिल में उतरने वाली क्षणिकाएं.. अतीत की नदी में गोता लगा रही है आँखें या आँखों में उभर आयी है अतीत की नदी, दिल को छू गयी ये लाइनें..
और रॉकेट बंधे पैरों की लकीर ने आसमां उड़ने का एहसास दिया!!
बहुत ही सुन्दर!! आभार!!

अशोक सलूजा said...

क्षणिकाएं.. वाह!गूड सत्य लिए हुए !बहुत रहस्य समेटे हुए !
खुश रहें!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

महेंद्र जी,,बधाई,,,,
बहुत ही उम्दा,लाजबाब क्षणिकाएँ ....

recent post: रूप संवारा नहीं,,,

Ramakant Singh said...

दिन गुजर गया
विलीन हो गया
दूर क्षितिज में
एक बिंदु-सा
लेकिन
अपने पैरों में
बँधे राकेट के धुएँ से
सफेद बादलों की लकीर
उकेर गया
मन के आकाश में !

गजब की क्षनिकाए सोचने को प्रेरित करती १ बड़ी या २ कहूँ या कह दूँ ३

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.....
बेहद खूबसूरत क्षणिकाएँ...
बहुत बढ़िया..

सादर
अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हर क्षणिक गहन भाव लिए हुये

शायद
अतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !

यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं ...

दीपिका रानी said...

सहज सरल शब्दों में गूढ़ बातें बयान करती क्षणिकाएं.. सुंदर

जीवन और जगत said...

खूबसूरत क्षणिकाएं। बस इतना ही कहूँगा- देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गम्‍भीर।

सदा said...

शायद
अतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !
वाह ... बेहतरीन

विभूति" said...

BHAUT HI KHUBSURAT....

Kailash Sharma said...

विवेक ने कहा-
हाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !

....बिल्कुल सच...सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर..

Maheshwari kaneri said...

बहुत खुबसूरत प्रस्तुति..

Amrita Tanmay said...

बहुत ही सुन्दर लगी ..

Ankur Jain said...

सुंदर क्षणिकाएं...
सरल एवं भावपूर्ण।।।

Vandana Ramasingh said...

बहुत सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से कही आपने ये क्षणिकाएं ...बधाई

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बिम्ब अनोखे छू गये, क्षणिकाओं के मित्र
गूढ़ सत्य को बाँध कर,खींचा अनुपम चित्र ||

kavita verma said...

adbhut bimb goodh saty..sundar rachna..

Aditya Tikku said...

on the dot -utam ***

Prnam swikar karne ka kasht kijiye

मनोज कुमार said...

दिल में समा गई सारी बातें। शब्द और बिम्ब मन को बांधते हैं।

रचना दीक्षित said...

विवेक ने कहा-
हाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !

चंद शब्दों में जीवन का फलसफा पेश कर दिया महेंद्र जी. सुंदर हैं सारी क्षणिकाएँ.

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर बिम्ब बनाएँ है रचनाओं के इर्द गिर्द ... दिल में उतर जाती हैं सभी क्षण्काएं ...

ऋता शेखर 'मधु' said...

विवेक ने कहा-
हाँ,
यही उचित है !
........
अंतर्मन का प्रकाश
कभी काला नहीं होता !

बहुत अच्छी बात कही आपने...
सभी क्षणिकाएँ सुंदर हैं!!

उपेन्द्र नाथ said...

hakiqat ko bayan karti sunder kshanikayen..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

Smart Indian said...

बहुत बढ़िया!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह महेन्द्र जी

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...


कितनी धुँधली-सी
हो गई हैं
छवियाँ
या
आँखों में
भर आया है कुछ


अतीत में झांकती आंखों से एक नगमा याद आ गया -
# आईना तोड़ दिया
ऐसा धुंधला हो गया चेहरा
देखना छोड़ दिया ...


आदरणीय महेंद्र जी
तीनों क्षणिकाएं सुंदर और प्रभावशाली हैं ।
बधाई एवं साधुवाद !


नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार

संजय @ मो सम कौन... said...

विवेक जागृत रहे तो कालिमा का कोई काम नहीं। तीनों क्षणिकायें बहुत खूबसूरत हैं, दूसरी वाली विशेष रूप से पसंद आई।

Asha Joglekar said...

तीनों क्षणिकांएं बहुत सुंदर ।
आँखों का अतीत में गोता लगाना,
और विवेक से फैला अंतर्मन का प्रकाश
और दिन का आसमान पर सपेद बादलों वाली लकीर उकेरना
सब प्रतिमान दिल को छू गये ।

Naveen Mani Tripathi said...

शायद
अतीत की नदी में
गोता लगा रही हैं
आँखें !

bahut sundar verma ji ......achchhi rachana ke liye badhai .

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत खूब |