आत्म प्रशंसा त्याज्य है, पर निंदा भी व्यर्थ,
दोनों मरण समान हैं, समझें इसका अर्थ।
एक-एक क्षण आयु का, सौ-सौ रत्न समान,
जो खोते हैं व्यर्थ ही, वह मनुष्य नादान।
इच्छा अजर अनंत है, अभिलाषा अति दुष्ट,
जो वीतेच्छा है वही, कहलाता संतुष्ट।
जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।
दुखी व्यक्तियों को सदा, खोजा करता कष्ट,
है यदि चित्त प्रसन्न तो, पल में कष्ट विनष्ट।
हर क्षण हम सब जा रहे, मृत्यु के निकट और,
इसीलिए सत्कर्म कर, करें सुरक्षित ठौर।
गुणीजनों के पास ही, गुण का होता पोष,
निर्गुण जन के निकट ये, बन जाते हैं दोष।
-महेन्द्र वर्मा
27 comments:
nasamate mahendra ji
sabhi dohe sundar sarthak , gyan ka deep jalate huye , badhai aapko
बहुत सुन्दर दोहे....
सार्थक प्रस्तुति...
सादर
अनु
सार्थक भाव व विचार के साथ..
बहुत हि बढ़ियाँ और बेहतरीन दोहे...
:-)
बहुत सुंदर दोहे ... सटीक सीख देते हुये ।
सुभाषित वर्मा साहब!!
इनपर कुछ भी कहना इन्हें मिला करना होगा.. इन्हें जीवन में अपनाना ही सबसे अच्छी प्रतिक्रया होगी!!
सादर प्रणाम!!
सुभाषित वर्मा साहब!!
इनपर कुछ भी कहना इन्हें मिला करना होगा.. इन्हें जीवन में अपनाना ही सबसे अच्छी प्रतिक्रया होगी!!
सादर प्रणाम!!
इच्छा अजर अनंत है, अभिलाषा अति दुष्ट,
जो वीतेच्छा है वही, कहलाता संतुष्ट।
जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।
किस को कहा जाय कि यह कमजोर है दुसरे से अर्थों में सभी संग्रहनीय जीवन मूल्यों को पोषित करते अद्भुत समय लगता है कमेन्ट करने में क्योंकि अर्थ मन को भाना चाहिए .इसलिए बार बार चिंतन ज़रूरी हो जाता है .
खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी
हर क्षण हम सब जा रहे, मृत्यु के निकट और,
इसीलिए सत्कर्म कर, करें सुरक्षित ठौर।
बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक दोहे,,,बधाई महेंद्र वर्मा जी,,
recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
वाह भई वाह!
इच्छा अजर अनंत है, अभिलाषा अति दुष्ट,
जो वीतेच्छा है वही, कहलाता संतुष्ट।
बहुत सुन्दर दोहे...
जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।
- कितना सहज हो जाये सामाजिक जीवन ,अगर यही समझ में आ जाय -
आभार !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 31-01-2013 को यहाँ भी है
....
आज की हलचल में.....मासूमियत के माप दंड / दामिनी नहीं मिलेगा तुम्हें न्याय ...
.. ....संगीता स्वरूप
. .
दुखी व्यक्तियों को सदा, खोजा करता कष्ट,
है यदि चित्त प्रसन्न तो, पल में कष्ट विनष्ट।...सत्य वचन ....
महेंद्र वर्मा जी हमेशा से शानदार लिखते है . एक कलम के और शब्दों के धनी को बधाई .
'जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।'
बहुत-बहुत सुन्दर भाव, अर्थ व प्रस्तुति !
बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर ....
~सादर!!!
बहुत सुंदर सटीक दोहे ...आभार
बहुत ही अच्छी लगी... आप्त-वाणी सी...
सुन्दर सन्देश के साथ बहुत ही सुन्दर शिक्षाप्रद दोहे ! इन्हें जीवन में उतार लिया जाए तो सारे कष्टों का निवारण हो जाए ! आपका बहुत-बहुत आभार एवं बधाई !
बहुत खूब...मन मोहते दोहे
एक-एक क्षण आयु का, सौ-सौ रत्न समान,
जो खोते हैं व्यर्थ ही, वह मनुष्य नादान।..
सभी दोहे सार्थक सन्देश देते हैं ... लाजवाब प्रस्तुति ...
इच्छा अजर अनंत है, अभिलाषा अति दुष्ट,
जो वीतेच्छा है वही, कहलाता संतुष्ट।
जिन कार्यों को पूर्ण कर, अंतर्मन हो शांत,
वही कर्म स्वीकार्य है, अन्य कर्म दिग्भ्रांत।
दुखी व्यक्तियों को सदा, खोजा करता कष्ट,
है यदि चित्त प्रसन्न तो, पल में कष्ट विनष्ट।
सभी दोहे एकसे बढ़कर एक
गुणीजनों के पास ही, गुण का होता पोष,
निर्गुण जन के निकट ये, बन जाते हैं दोष
sabhi dohe sangrhneey hain sir ....sadar badhai .
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है वर्मा साहब!!
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
Post a Comment