लम्हा एक पुराना ढूंढ,
फिर खोया अफ़साना ढूंढ।
वे गलियां वे घर वे लोग,
गुज़रा हुआ ज़माना ढूंढ।
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
लोग बदल से गए यहां के,
कोई और ठिकाना ढूंढ।
कुदरत में है तरह तरह के,
सुंदर एक तराना ढूंढ।
दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा इक पैमाना ढूंढ।
जिस पर तेरा नाम लिखा हो,
ऐसा कोई दाना ढूंढ।
- महेन्द्र वर्मा
7 comments:
अति सुन्दर..अति सुन्दर..क्या प्रबल भाव है.. बस अति सुन्दर..
लोग बदल से गए यहां के,
कोई और ठिकाना ढूंढ।
कुदरत में है तरह तरह के,
सुंदर एक तराना ढूंढ।
दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा इक पैमाना ढूंढ।
बहुत बहुत सुन्दर भावयुक्त ग़ज़ल आदरणीय महेंद्र सर
बेहतरीन पंक्तियाँ
Mahendra sa!! Chhote bahar mein badi maanikhej gazal!
बहुत ही बेहतरीन रचना...
:-)
कुदरत में है तरह तरह के,
सुंदर एक तराना ढूंढ।..
सच है कुदरत तो खजाना है ... जो भी उसमें उतरा उसने जो चाहा वही ढूँढा ... लाजवाब गज़ल ...
बहुत लाजवाब. सबसे उम्दा ...
दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा इक पैमाना ढूंढ।
दाद स्वीकारें.
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