कृष्ण विवर

कुछ भी नहीं था
पर शून्य भी नहीं था
चीख रहे उद्गाता ।

जगती का रंगमंच
उर्जा का है प्रपंच,
अकुलाए-से लगते
आज महाभूत पंच,

दिक् ने ज्यों काल से
तोड़ लिया नाता।

न कोई तल होगा
न ही कोई शिखर,
अस्ति और नास्ति को
निगलेगा कृष्ण विवर,

तुम्ही जानते हो
न जानते विधाता।

                    
-महेन्द्र वर्मा