छंदों के तेवर बिगड़े हैं,
गीत-ग़ज़ल में भी झगड़े हैं।
राजनीति हो या मज़हब हो,
झूठ के झंडे लिए खड़े हैं ।
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
दीयों की औकात न पूछो
किसी सूर्य के ये टुकड़े हैं ।
मौन-मुखर-पाखंड-सत्यता,
मेरे गीतों के मुखड़े हैं । -महेन्द्र वर्मा
गीत-ग़ज़ल में भी झगड़े हैं।
राजनीति हो या मज़हब हो,
झूठ के झंडे लिए खड़े हैं ।
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
दीयों की औकात न पूछो
किसी सूर्य के ये टुकड़े हैं ।
मौन-मुखर-पाखंड-सत्यता,
मेरे गीतों के मुखड़े हैं । -महेन्द्र वर्मा
8 comments:
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
बहुत खूब कहा है.
प्रभावशाली प्रस्तुति, बहुत कुछ है रेखांकित करने के लिए
"मौन-मुखर-पाखंड-सत्यता, मेरे गीतों के मुखड़े हैं"
सादर
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
..मुर्दा दिल है तो अकड़ उनका स्वभाव जो है ..
बहुत सुन्दर ...
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
...वाह..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
बहुत खूब। सार्थक रचना की प्रस्तुति।
बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,
जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं।
Khoob Kahi...
बहुत ही शानदार रचना की प्रस्तुति।
छोटी बहर में गहरी बात ... कहाल के शेर हैं सभी ...
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