ले जा गठरी बाँध

वक़्त घूम कर चला गया है मेरे चारों ओर,
बस उन क़दमों का नक़्शा है मेरे चारों ओर ।

सदियों का कोलाहल मन में गूँज रहा लेकिन,
कितना सन्नाटा पसरा है मेरे चारों ओर ।

तेरे पास अभाव अगर है ले जा गठरी बाँध,
नभ जल पावक मरुत धरा है मेरे चारों ओर ।

मंदिर मस्जिद क्यूँ भटकूँ जब मेरा तीरथ नेक,
शब्दों का सुरसदन बना है मेरे चारों ओर ।

रहा भीड़ से दूर हमेशा बस धड़कन थी पास,
रुकी तो सारा गाँव खड़ा है मेरे चारों ओर ।

                                             
  -महेन्द्र वर्मा

14 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " अविभाजित भारत की प्रसिद्ध चित्रकार - अमृता शेरगिल - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Unknown said...

बहुत सुन्दर रचना ।

आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"

यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"

Bharat Bhushan said...

महेंद्र जी, "नभ जल पावक मरुत धरा" को बोल कर देखना पड़ा. विचार के धरातल पर आपकी इस ग़ज़ल में ग़ज़ब की परिपक्वता है.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत खूब , कमाल की पंक्तियाँ हैं |

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा और बेहतरीन रचना.....बहुत बहुत बधाई.....

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर रचना......

Madhulika Patel said...

बहुत बेहतरीन रचना । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

Amrita Tanmay said...

आपको पढ़कर कल्पनाशीलता प्रबल हो जाती हैं .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

धड़कन रुके और सारा गाँव पास खड़ा हो इससे ज्यादा क्या चाहिए . बेहतरीन अभिव्यक्ति .

Kailash Sharma said...

रहा भीड़ से दूर हमेशा बस धड़कन थी पास,
रुकी तो सारा गाँव खड़ा है मेरे चारों ओर ।
...वाह...बहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...

Jyoti Dehliwal said...

मंदिर मस्जिद क्यूँ भटकूँ जब मेरा तीरथ नेक,
शब्दों का सुरसदन बना है मेरे चारों ओर ।
बहुत सुंदर्।

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... बहुत गी लाजवाब शेर ... सीधे दिल में उतारते हुए ...

Vandana Ramasingh said...

शब्दों का सुरसदन बना है मेरे चारों ओर ।

वाकई सुरसदन है यहाँ ..... बहुत सुन्दर रचना आदरणीय

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...