यूँ ही

यादों के कुछ ताने-बाने
और अकेलापन,
यूँ ही बीत रहीं दिन-रातें
और अकेलापन।
ख़ुद से ख़ुद की बातें शायद
ख़त्म कभी न हों,
कुछ कड़वी कुछ मीठी यादें
और अकेलापन।
जीवन डगर कठिन है कितनी
समझ न पाया मैं,
दिन पहाड़ खाई सी
रातें और अकेलापन।
किसने कहा अकेला हूँ मैं
देख ज़रा मुझको,
घेरे रहते हैं सन्नाटे
और अकेलापन।
पहले मेरे साथ थे ये सब
अब भी मेरे साथ,
आहें, आँसू, धड़कन
साँसें और अकेलापन।
 

-महेन्द्र वर्मा

9 comments:

Unknown said...

वाह महेंद्र जी अच्छी कविता रची

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

कविता/ गीत के विषय में कुछ नहीं कहूँगा महेन्द्र सा. कुछ भी कहना सूरज और चिराग वाला मामला होगा... लेकिन एक बात कहना आवश्यक समझता हूँ... पढते हुये कल्पना कर रहा था कि यह गीत जगजीत सिंह की आवाज़ में कितना प्रभावशाली होता. एक अच्छे संगीतकार के लिये एक बेहतरीन नग़मा है सर!

महेन्‍द्र वर्मा said...

आप की संवेदनशीलता को नमन, सलिल जी ।

Vandana Ramasingh said...

खूबसूरत सी यह एक ग़ज़ल एक गंभीर सी आवाज़ में सुनने को मिल जाए तो क्या कहना .....बहुत ही सुन्दर

दिगम्बर नासवा said...

जीवन का सार भी तो यही है ... फिर अकेलापन ही तो है जो कभी साथ नहीं छोड़ता ....

Anonymous said...

महेन्द्र जी, आपके ब्लाॅग पर पठनीय और ज्ञानवर्द्धक लेख लिए बधाई। आपके ब्लाॅग को हमने यहां पर Best Hindi Blogs लिस्टेड किया है।

Madhulika Patel said...
This comment has been removed by the author.
Madhulika Patel said...

यादों के ताने वाने और आकेलापन ...बहुत सुंदर ।

Bharat Bhushan said...

सारी ज़िंदगी अकेलेपन को भरने में निकल जाती है. इसी भरने को ज़िंदगी कहा जाता है.

पहले मेरे साथ थे ये सब, अब भी मेरे साथ,
आहें, आँसू, धड़कन, साँसें और अकेलापन।

बहुत बढ़िया! क्या बात है!!