बातों का फ़लसफ़ा



 

ज़रा-ज़रा इंसाँ  होने से मन को सुकून मिलना तय है]
  अगर देवता बन बैठे तो हरदम दोष निकलना तय है ।

सूरज गिरा क्षितिज के नीचे   सुबह सबेरे फिर चमकेगा]
चलने वालों का ही गिरना उठना फिर से चलना तय है ।

जब अतीत की गहराई से   यादों का लावा-सा निकले]
मन में जमी भावनाओं का गलना और पिघलना तय है ।

जहाँ-जहाँ  ढूँढ़ोगे   उसको   अपना   ही   साया   देखोगे]
ख़ुद से अलग समझते हो तो इस यक़ीन में छलना तय है ।

बातों का है  यही फ़़लसफ़ा  रपटीली  होती हैं   अक्सर]
समझ गए तो सँभल गए पर चूके अगर फिसलना तय है ।


                    -महेन्द्र वर्मा



13 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा सा.
आपकी ग़ज़लों में बयान की खूबसूरती के साथ एक छिपा हुआ सन्देश, एक दर्शन, एक सीख दे जाता है! ग़ज़ल कहने का मतलब सिर्फ व्यवस्था को कोसना या महबूबा की तारीफ़ करना नहीं, एक फलसफा बयान करना भी है, ये आप से सीखा है!!

Amrita Tanmay said...

आपका यही फ़लसफ़ा मस्ती बिखेरता है । उम्दा ..

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हर पंक्ति कमाल की है .... बेहद अर्थपूर्ण भाव

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा है ... देवता होना कठिन है .. इंसान रह सकें तो भी बहुत है ... लाजवाब

कविता रावत said...

बातों का है यही फ़़लसफ़ा रपटीली होती हैं अक्सर,
समझ गए तो सँभल गए पर चूके अगर फिसलना तय है ।
.. बहुत सटीक ... ज़ुबां फिसली तो सब गुड़ गोबर होते देर नहीं लगती

Bharat Bhushan said...

जहाँ-जहाँ ढूँढ़ोगे उसको अपना ही साया देखोगे,
ख़ुद से अलग समझते हो तो इस यक़ीन में छलना तय है ।

आपकी रचनाओं में फलसफा सहज ही आ जाता है. बहुत ही प्रशंसनीय.

Kailash Sharma said...

जहाँ-जहाँ ढूँढ़ोगे उसको अपना ही साया देखोगे,
ख़ुद से अलग समझते हो तो इस यक़ीन में छलना तय है ।
...वाह...बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

Satish Saxena said...

वाह , बहुत खूबसूरत ....

Vandana Ramasingh said...

सूरज गिरा क्षितिज के नीचे सुबह सबेरे फिर चमकेगा,
चलने वालों का ही गिरना उठना फिर से चलना तय है ।

जब अतीत की गहराई से यादों का लावा-सा निकले,
मन में जमी भावनाओं का गलना और पिघलना तय है ।

खूबसूरत मतले के साथ शानदार ग़ज़ल आदरणीय

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/7.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अगर देवता बन बैठे तो हरदम दोष निकलना तय है ।

सटीक ....

संजय भास्‍कर said...

जहाँ-जहाँ ढूँढ़ोगे उसको अपना ही साया देखोगे,
ख़ुद से अलग समझते हो तो इस यक़ीन में छलना तय है ।

वह महेंद्र जी बहुत ही प्रशंसनीय !

nhuthuy said...

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