जो भी होगा अच्छा होगा,
फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा ।
भले राह में धूप तपेगी,
मंज़िल पर तो साया होगा ।
दिन को ठोकर खाने वाले,
तेरा सूरज काला होगा ।
पाँव सफ़र मंज़िल सब ही हैं,
क़दम-दर-क़दम चलना होगा ।
कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे घर आईना होगा ।
-महेन्द्र वर्मा