देवता



आदमी को आदमी-सा फिर बना दे देवता,

काल का पहिया ज़रा उल्टा घुमा दे देवता।

लोग सदियों से तुम्हारे नाम पर हैं लड़ रहे,
अक़्ल के दो दाँत उनके फिर उगा दे देवता।

हर जगह मौज़ूद पर सुनते कहाँ हो इसलिए,
लिख रखी है एक अर्ज़ी कुछ पता दे देवता।

शौक से तुमने गढ़े हैं आदमी जिस ख़ाक से,
और थोड़ी-सी नमी उसमें मिला दे देवता।

लोग  तुमसे  भेंट  करवाने  का  धंधा  कर  रहे,
दाम उनको बोल कर कुछ कम करा दे देवता।

धूप-धरती-जल-हवा-आकाश के अनुपात को,
कुछ बदल कर देख थोड़ा फ़र्क़ ला दे देवता।

आजकल बंदों की हालत देख तुम हैरान हो, 
आदमी का आदमी से मन मिला दे  देवता।

                                                                              -महेन्द्र वर्मा

10 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बेहतरीन गीतिका।

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।

सादर
धन्यवाद।

शुभा said...

वाह!बेहतरीन ।आदमी का आदमी से मन मिला दे ,देवता .....वाह 👌

Nitish Tiwary said...

वाह! खूबसूरत पंक्तियाँ।

मन की वीणा said...

बहुत खूब!
अपने आराध्य से विश्व उत्थान और सभी की भलाई की कामना करती सुंदर रचना हर बंध सार्थक।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

आसमान पर बैठा वह, आजकल इधर कम ही देखता है

जिज्ञासा सिंह said...

आज के परिदृश्य में,बहुत सुंदर आग्रह अपने आराध्य देव से...।

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल said...

सुन्दर सृजन - नमन सह।

सधु चन्द्र said...

सुंदर सृजन।
सादर।

Amrita Tanmay said...

अति सुन्दर ।