सच के झरोखे से - विमोचन

 



मेरी दूसरी पुस्तक ‘सच के झरोखे से ’ का विमोचन

कोई भी कृतिकार अमर नहीं होता किन्तु उसकी कोई अमर हो जाती है। यह विचार व्यक्त किया विद्वान भाषाविद डॉ. चित्तरंजन कर ने। वे महेन्द्र वर्मा की नई पुस्तक सच के झरोखे से के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सत्य तो निरपेक्ष होता है लेकिन सच लौकिक दृष्टिकोण को व्यक्त करता है। इस पुस्तक का शीर्षक और इसकी विषय वस्तु उसी  लौकिक सच को विभिन्न संदर्भों में उद्घाटित करता है। डॉ. कर ने पुस्तक के इस अंश का विशेष उल्लेख किया– ‘ऋग्वैदिककालीन देवताओंद्यु, आपः, मरुत, इंद्रा, अग्नि, पर्जन्य, ऊषा, सोम, सविता, पृथ्वी आदि की विशेषताओं को उन लोगों ने जाना जिन्हें आज हम वैज्ञानिक कहते हैं। यदि ईश्वर की लीला का चिंतन-मनन करने वालों को धार्मिक और आस्तिक कहा जाता है तो ऐसे महान वैज्ञानिक ही सच्चे अर्थों में धार्मिक और आस्तिक हैं क्योंकि वे सृष्टि की सर्वोच्च सत्ता ऊर्जा और उससे निर्मित पदार्थों की निरंतर ‘उपासना’ करते हैं।

 

 

विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध छंदकार श्री अरुण निगम ने कहा- ‘इस पुस्तक के सभी आलेख शोध-आलेख हैं लेखक ने परिश्रमपूर्वक विभिन्न आलेखों में संबंधित तथ्यों के मूल कारणों तक पहुंचने का प्रयास किया है छत्तीसगढ़ में गद्य लेखन में यह पुस्तक मील का पत्थर सिद्ध होगी स्वामी स्वरूपनन्द महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला कार्यक्रम की प्रमुख वक्ता थीं उन्होंने पुस्तक के एक आलेख ‘सच क्या है’ का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि यह आलेख सम्पूर्ण पुस्तक का प्रतिनिधित्व करता है। किसी घटना के कारणों को हम बिना तर्क किए मांलेते है तो यह एक अलग तरह का विश्वास है और यदि तर्कों के द्वारा कारणों को पहचानते है तो यह अलग तरह का विश्वास होता है। साहित्यकार जगदीश देशमुख ने अपने उद्बोधन में पुस्तक के महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया

हिन्दी साहित्य भारती के प्रदेशाध्यक्ष श्री बलदाऊ राम साहू के अयोजकत्व में सम्पन्न इस कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों के द्वारा माँ सरस्वती के पूजन-अर्चन से हुआ। बलदाउ राम साहू ने  स्वागत उद्बोधन उद्बोधन में कहा कि पुस्तक में कुल 32 आलेख हैं जो साहित्य, कला, विज्ञानं, धर्म, दर्शन, संगीत, लोक परंपरा आदि विविध विषयों पर लिखे गए हैं I इस के पश्चात अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया गया। लेखकीय वक्तव्य में महेन्द्र वर्मा ने कहा कि अध्ययनशीलता सच और भ्रम को अलगअलग चिह्नित कर देती है। सामान्यजन-मानस में व्याप्त भ्रम ने इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा दी।

कार्यक्रम के अंत में अतिथियों को स्मृतिचिह्न भेंट किया गया ।लोक- गायक और गीतकार श्री सीताराम साहू ‘श्याम’ ने कार्यक्रम का संचालन किया। उन्होंने विमोचित पुस्तक के शीर्षकों को लेकर लिखी गई स्वरचित कविता भी प्रस्तुत की। विशेष रूप से पधारे श्री मोतीलाल साहू ने बांसुरी वादन प्रस्तुत किया। आभार प्रदर्शन डॉ. बी. रघु ने किया। कार्यक्रम में श्रीमती माधुरी कर, श्री पूनारामसाहू, कु. सुजात, डॉ. आशीष साहू , श्री बागची  आदि उपस्थित थे।

- 'छत्तीसगढ़ आसपास' में प्रकाशित रिपोर्ट

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पुस्तक विमोचन की हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Amrita Tanmay said...

हार्दिक शुभकामनाएँ ।