जल से काया शुद्ध हो, सत्य करे मन शुद्ध,
ज्ञान शुद्ध हो तर्क से, कहते सभी प्रबुद्ध।
धरती मेरा गाँव है, मानव मेरा मीत,
सारा जग परिवार है, गाएँ सब मिल गीत।
ज्ञानी होते हैं सदा, शांत-धीर-गंभीर,
जहाँ नदी में गहनता, जल अति थिर अरु धीर।
जीवन क्या है जानिए, ना शह है ना मात,
मरण टले कुछ देर तक, बस इतनी सी बात।
कभी-कभी अविवेक से, हो जाता अन्याय,
अंतर की आवाज से, होता सच्चा न्याय।
तीन व्यक्तियों का सदा, करिए नित सम्मान,
मात-पिता-गुरु पूज्य हैं, सब से बड़े महान।
यों समझें अज्ञान को, जैसे मन की रात,
जिसमें न तो चाँद है, न तारे मुसकात।
9 comments:
जीवन क्या है जानिए, ना शह है ना मात,मरण टले कुछ देर तक, बस इतनी सी बात''
क्या बात है ! बहुत खूब
जीवन क्या है जानिए, ना शह है ना मात,मरण टले कुछ देर तक, बस इतनी सी बात।बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आदरणीय महेंद्र जी!
भारतीय साहित्य एवं संस्कृति
बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
वाह
अति सुन्दर दोहे।
Sabhi dohe bahut achchhe aur arthpuurn hain.
good dohe
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