तिक्त हुए संबंध सभी मैं
व्यथित हुआ हूं,
नियति रूठ कर चली गई या,
भ्रमित हुआ हूं।
दुर्दिन में भी बांह छुड़ा कर
चल दे ऐसे,
मित्रों के अपकार भार से
नमित हुआ हूं।
क्षुद्रकाय तृण का बिखरा
साम्राज्य धरा पर,
पतझड़ में भी हरा-भरा क्यों
चकित हुआ हूं।
अनुशीलन कर ग्रंथ सहस्त्रों
ज्ञात हुआ तब,
बुद्धि, विवेक, ज्ञान, कौशल से
रहित हुआ हूं।
-महेन्द्र वर्मा